भारत देश के ईतिहास में ऐसे ऐसे राजाओं की यश गाथा छिपी पड़ी है जिन्हें आप जानकर गर्व महसूस करेंगे ऐसे राजा भी विन्ध्य धरा के आसपास बघेलखंड और बुन्देलखंड में ऐसे ऐसे राजा हुए जिन्होंने कई मुगलों के छक्के तक छुड़ा दिए हैं उन्ही में से एक नाम है मुग़ल बादशाह बाबर के समकालीन ओरछा रियासत के आदिपुरुष पन्ना (मध्यप्रदेश) के महाराजा रूद्रप्रताप सिंह जू देव बहादुर (बुंदेला) (शासनकाल 1501-1531 ई.) , महाराजा रूद्र प्रताप की मृत्यु के बाद मृत्यु के बाद भारतीचन्द्र (1531-1554 ई०) गद्दी पर बैठा। महाराजा रूद्र प्रताप सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान जिन्होंने सिकंदर और इब्राहिम लोदी जैसे विदेशी आक्रंताओ से युद्ध किया था। बताया जाता है कि पन्ना (मध्यप्रदेश) के महाराजा रूद्रप्रताप सिंह जू देव बहादुर (बुंदेला) एक कुशल शासक के साथ साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थे, यही कारण है कि उनके ग्वालियर के तोमर नरेशों से उसने मैत्री संधि थी,
ओरछा रियासत का ईतिहास
जैसा की आप जान चुके है कि ओरछा रियासत की नीव महाराज रूद्र प्रताप सिंह बुन्देला ने डाली थी, ओरछा के नाम के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो है छिपा हुआ महल. कभी-कभी इसे उरछा के रूप में भी जाना जाता है, छिपे हुए महलों का यह शहर राज्य के निवाड़ी जिले में स्थित है आज भी ओरछा पर बुंदेलों की वीरता और देशभक्ति का प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है। उन्हीं की वीरता और देशभक्ति के नाम से ओरछा इतिहास में विशिष्ट सम्मान पूर्ण स्थान रखता है। राजा रूद्रप्रताप का शासनकाल 1501 ईस्वी से 1531 ईस्वी तक रहा। माना जाता है कि उनके द्वारा ही वर्तमान ओरछा को बसाया गया था। बताया जाता है कि उनके शासनकाल में यहां का किला 8 वर्ष में बनकर संपन्न हुआ था।
सन 1509 से पहले राजा रूद्र प्रताप की राजधानी गढ़कुंडार हुआ करती थी। जिसे 1509 ईसवी में यहां स्थानांतरित किया गया। महाराजा रूद्रप्रताप ने अजयगढ़ घाट का निर्माण करवाया,साथ ही बलदेवजी के मंदिर व गोविन्ददेवजी के मंदिर का निर्माण करवाया एवं पन्ना में स्थित एक ब्रिज समेत कई सड़कों का निर्माण कार्य भी इन महाराजा द्वारा करवाया गया। मात्र 45 वर्ष की आयु में महाराजा सा का देहांत हो गया।
ओरछा रियासत की पीढियों ने नाम
महाराज रूद्र प्रताप सिंह जू देंव ने जिस ओरछा रियासत की नीव डाली वह 17 पीढियो तक चलती रही.
1.रूद्र प्रताप (1501-1531)
- भारती चंद्र (1531-1554)
- मधुकर शाह (1554-1592)
4.राम शाह (1592-1605)
- वीर सिंह देव (1605-1627)
- जुझार सिंह
(7)पहाड़ सिंह
8.सुजान सिंह (1653-1624)
9.इंद्रमणि (1672-1675)
10.यशवंत सिंह (1675-1684)
11.भगवंत सिंह (1684-1689)
12.उद्दोत सिंह दत्तक पुत्र (1689-1736)
13.पृथ्वी सिंह (1736-1752)
14.सावंत सिंह (1752-1765)
15.हते सिंह (1765-1776)
- विक्रमजीत सिंह (1776-1817)
- धर्मपाल सिंह (1817-1834)