यूं तो प्रदेश के मुखिया प्रदेश की बेटियों को अपनी भांजी बताते है लेकिन मैदानी अमले को मुख्यमंत्री की संजीदगी से कोई लेना देना नही है,आपको बता दें कि इस बात की जीती जागती तस्वीर एमपी के शहडोल जिले से आई।
क्या है पूरा मामला
शहडोल जिले के बुढ़ार ब्लॉक के कोटा गांव के निवासी लक्षमण सिंह गोंड ने अपनी बेटी माधुरी को इलाज के लिए जिला अस्पताल शहडोल में भर्ती कराया था। 13 साल की माधुरी सिकल सेल बीमारी से पीड़ित थी। जब गांव में बेटी की तबीयत बिगड़ी तो परिजन उसे 12 मई को जिला अस्पताल ले आये । दो दिन चले इलाज के बाद भी माधुरी की जान नहीं बच सकी। 14 मई की शाम माधुरी की मौत हो गयी। परिजनों ने शव को अपने गृह ग्राम तक ले जाने के लिए शव वाहन करने की कोशिश कि लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली।
पिता ने जब शव वाहन मांगा तो अस्पताल प्रशासन ने कहा कि 15 KM से ज्यादा दूरी के लिए नहीं मिलेगा ,आपको खुद करना पड़ेगा ।गरीब परिजन निजी शव वाहन का खर्च नहीं उठा सकते थे । इसलिए बेचारे बाइक में ही शव रखकर चल पड़े
कलेक्टर ने लगाई जिम्मेदारों को फटकार
निराश परिजन बेटी के शव को बाइक में रखकर रात ही 60 किलोमीटर दूर अपने गांव के लिए निकल पड़े।कलेक्टर वंदना वैद्य को बाइक से शव ले जाने की सूचना मिली । कलेक्टर आधी रात को बाइक में शव ले जाते परिजनों को रोका और सिविल सर्जन को तत्काल शव वाहन भेजने के निर्देश दिए।सिविल सर्जन डॉ जी एस परिहार भी मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिजन को शव वाहन उपलब्ध करा उनके गृह गाँव भेजा गया। पीड़ित परिजनों के लिये समाजसेवी प्रवीण सिंह ने भोजन और पानी की व्यवस्था करा उन्हें गांव के लिए रवाना किया।कलेक्टर ने परिजनों पांच हजार की आर्थिक सहायता भी दी ।
कलेक्टर ने अधिकारियों को भी फटकार लगाते हुए निर्देश दिए कि जरूरतमंदों को शव वाहन उपलब्ध कराने में किसी तरह की लापरवाही नहीं की जाए.
गौर करने वाली बात यह है कि आदिवासी बाहुल्य शहडोल संभाग के जिलों में आये दिन कभी खाट पर मरीजों को ले जाने,कभी सायकल कभी बाइक पर शव ले जाने के मामले सामने आते रहे हैं।मामला सामने आने के बाद प्रशासन व्यवस्था दुरुस्त करने के दावे करता है लेकिन फिर भी लाचार गरीबों को सुविधा नहीं मिल पाती है।