आज जब संपूर्ण राष्ट्र राममय है, अयोध्या में 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी, तब यह जानना आवश्यक होगा उमरिया जिले से प्रभु राम लक्ष्मण सीता के वनगमन का मार्ग क्या था ?
पौराणिक मान्यता के अनुसार चित्रकूट से सतना होते हुए भगवान राम सबसे पहले मार्कण्डेय आश्रम पहुंचे थे। मार्कण्डेय ऋषि ने विंध्य क्षेत्र में आकर सोन एवम छोटी महानदी के संगम पर अपना आश्रम बनाकर यहां तपस्या की थी। यह आश्रम बांधवगढ़ से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में है। बाणसागर बांध बन जाने के कारण अब यह जलमग्न हो गया है।
मार्कण्डेय आश्रम के बाद भगवान राम बांधवगढ़ के लिए प्रस्थान किए। किवदंती है, उन्होंने यहां एक चौमासा व्यतीत किया। आज भी पर्वत में सीता की रसोई देखी जा सकती है। भगवान राम को यह स्थान अत्यंत प्रिय था,जिसे उन्होंने अपने अनुज लक्ष्मण को सौप दिया था। बांधव अर्थात भाई द्वारा सौंपे जाने के कारण इसका नाम बांधवगढ़ पड़ गया। बांधवगढ़ बांधव का आशय भाई, गढ़ अर्थात किला, इस तरह बांधव का किला बांधवगढ़ कहलाया। बांधवगढ़ के बाद भगवान राम ने ने सोन जोहिला नदी के संगम में बैकुंठवासी पिता दशरथ जी के नाम से श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया था, इसलिए यह दशरथ घाट कहलाता है। यह बिजौरी के समीप पड़ता है। आज भी आदिवासी श्रद्धा भाव से यहां पिंडदान करते हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर यहां मेला भरता है। भगवान कार्तिकेय (चतुर्भुज) का मंदिर भी यहां दर्शनीय है।
राम वन पथ गमन में उमरिया जिले से मार्कण्डेय आश्रम, बांधवगढ़ एवम दशरथ घाट का उल्लेख मिलता है।