भगोरिया मेला: अपने अपनी शादी को लेकर न जाने कितने सपने देखे होने अपने शायद किसी को पसंद भी कर लिया हो पर जब तक घर वाले बात आगे नही बढ़ाते तब तक आप अपना मनपसन्द जीवन साथी न चुन पाएं लेकिन क्या आपको पता हैं की मध्यप्रदेश में एक ऐसे भी मेले का आयोजन होता हैं,जन्हा युवक युवतिया को अपनी मर्जी से अपने जीवन साथी को चुनने की छूट रहती है और जीवन साथी को चुनने की यह स्वतंत्रता काफी लंबे असरे से चली आ रही है. जी हा हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के झाबुआ और उसके आसपास के क्षेत्र में होलिका दहन के 7 दिन पूर्व शुरू होने वाले भगोरिया उत्सव की,जहाँ आदिवासी समाज होली को अलग ही तरीके से मानता हैं. और इसी उत्सव के दौरान आदिवासी युवक और युवती अपना मन पसंद साथी चुनते है.
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गुलाल लगाकर और पान खिलाकर तय होतें हैं रिश्ते
भगोरिया मेले (Bhagoria Mela)में झुण्ड के झुण्ड में आदिवासी युवक युवती तरह तरह के रंग विरंगे पोशाकों में नजर आते है,सजधज कर अपने जीवन साथी की तलाश में आए आदिवासी युवक युवतिओं की तलाश भगोरिया मेले में पूरी होती है. और एक दूसरे को पंसद करने का तरीका भी बड़ा निराला होता है.इसमें पहला तरीका यह हैं की यदि कोई लड़का जिस लड़की को वह पसंद करता हैं उसे वह पान खाने को दे दे और वह लकड़ी पान को खा ले तो इसमें लड़की की हां समझी जाती हैं और दोनों फिर मेले से भाग शादी कर लेते हैं.
इसी तरह यदि कोई लड़का अपने पसंद की लड़की के गालों पर गुलाल मल दें और लड़की भी प्रतिउत्तर में लड़के के गालों में गुलाल मल दे तब भी इसे शादी के लिए हां के तौर पर देखा जाता हैं और दोनों भाग कर शादी कर लेते है. पर यदि लड़की यदि अपने गाल में लगे गुलाल को पोछ दे तो इसे ना के तौर पर देखा जाता है.
चोली के बदले अगर भेज दे तीर
पान खिलाने और गुलाल लगाने की तरह ही तीर और चोली की अदला बदली का भी रिवाज हैं, बताया जाता हैं की यदि कोई लड़का जिसे वह पसंद करता हैं उसके लिए वह चोली भेज दे और लडकी यदि चोली को स्वीकार करने के बाद चोली के बदले में तीर लड़के के लिए भेज दे तब भी लड़का लड़की का रिश्ता तय माना जाता है.
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क्या हैं भगोरिया शब्द का अर्थ
पुरानी मान्यताओं के अनुसार भगोरिया शब्द का अर्थ हैं भाग कर शादी करना,मेले के दौरान युवक या युवती को अपने पसंदीदा जीवन साथी को चुनने की पूरी आजादी रहती है. हालाँकि वर्तमान में बदलते परिवेश में अब यह रिवाज खत्म सा होता दिखाई दे रहा हैं,वर्तमान में युवक युवतियों ने इस तरह से भाग कर शादी करने को नकारने लगे हैं,यहाँ तक की अब भगोरिया उत्सव को प्रणय उत्सव कहने में तीखी आपत्ति भी दर्ज की जाने लगी है, लेकिन भगोरिया शब्द की उत्पत्ति ही भगा कर शादी करने की प्रथा से हुई है.
भागोर मेले से हुआ भगोरिया
एक और दूसरी मान्यता के अनुसार राजा भोज के शासनकाल के दौरान आदिवासी भील राजा कासूमरा और बालून के भगोर मेले की शुरवात की थी, इसके पश्चात इसे धीरे धीरे इसका नाम भगोरिया कहा जाने लगा. कालान्तर में एनी भील राजाओं ने भी अपने राज्य की जनता के लिए भगोरिया मेले का आयोजन आपने राज्य में करना चालू कर दिया.
देश विदेश में चर्चित हैं भगोरिया मेला
भगोरिया उत्सव की धूम न केवल मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में रहती हैं बल्कि इसे देखने के लिए देश के कोने कोने के साथ साथ विदेशों से भी लोग पहुँचते हैं. अब तो आजकल जिला प्रशासन ऐसे तमाम लोगो के लिए रुकने के लिए अच्छे इन्तेजामत करने लगा है.
बड़े बड़े ढोलों की थाप पर होता हैं आदिवासी नृत्य
भगोरिया उत्सव के दौरान बड़े बड़े ढोलो की थाप पर बांसुरी की तान ,घुघुरुयों की खनक मेले के मनमोहक दृश्य पर चार चाँद लगा देती है.वही नख से लेकर शिख तक चांदी के आकर्षक गहनों से लदी हुई आदिवासी युवतियां पावों में घुघरू पहन आकर हाथों में रंगबिरंगे रुमाल रखकर मनमोहक नृत्य करती हैं,कुल मिलाकर बदलते परिवेश में सांस्कृतिक धरोहरों को संजोय भगोरिया उत्सव की बात ही निराली है.
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