विश्व विरासत दिवस पर प्रदीप सिंह गहलोत (प्राचार्य) उमरिया जिले के पुरातात्विक धरोहर विषय पर स्कूल के बच्चों के साथ समय व्यतीत कर अनुभव साझा करने के का काम किया. प्रदीप सिंह गहलोत (प्राचार्य) के साथ राबर्टसन कॉन्वेंट स्कूल उमरिया के बच्चे सुबह-सुबह उमरिया शहर से किलोमीटर दूर मढ़ीवाह मंदिर उमरिया के लिए पूरे उमंग-उत्साह के साथ निकल पड़े। घने हरे भरे जंगलों से होते हुए हम 10-11 वीं सदी के मंदिर मढ़ीवाह पहुंच गए। मढ़ी अर्थात मढ़िया, वाह अर्थात जंगल की बाहुल्यता इसलिए यह मढ़ीवाह कहलाता है।
मंदिरों का हमारे जीवन के साथ आस्था और विश्वास के बहुत ही बारीक, लेकिन उतने ही मजबूत धागों के ताने-बाने से बुना एक गहन रिश्ता है। मंदिर केवल किसी धर्म-विशेष की पूजा-अर्चना के निमित्त बनाए गए देवालय मात्र नहीं हैं, बल्कि यह निर्माता की परिष्कृत रुचि, कला-मर्मज्ञता और पत्थरों में देशकाल की रीतियों, नीतियों की जीवंत उपस्थिति देने वाली पारखी नजरों की दृष्टि समग्रता के सूचक हैं। ये मंदिर अपने निर्माण काल की कला-संस्कृति, रिवाजों और परंपराओं के बेजोड़ उदाहरण हैं। धार्मिक दिव्यता ही नहीं निर्माण की भव्यता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। कारीगरों के प्रस्तर संयोजन के अद्भुत कला-कौशल ने शिखर और भित्तियों में जैसे उस समय और समाज को जीवंत कर दिया है। ये मंदिर हम सब की धरोहर है।
प्रदीप सिंह गहलोत (प्राचार्य) और बच्चों के बीच हुए संवाद को पढ़कर आप भी जानिए मंदिर की बारीकियां
छात्रा विदुषी ने सबसे पहले जानना चाहा मंदिर के किस भाग को क्या कहते हैं ?
मैं लगातार कई वर्षों से उमरिया जिले पर अपना कार्य #weloveumaria के थीम पर ही कर रहा हूं ।
किसी भी मंदिर के पुरातत्व को जानने समझने के लिए हमें सबसे पहले मंदिर की आधारभूत रचनाक्रम को ही देखना पड़ता है।
1.अधिष्ठान : यह मंदिर का आधार है जिसे हम बेसमेंट भी कह सकते हैं। यह बहुत ही ऊंचा सीढ़ीदार है।
- प्रांगण : यह खुला हुआ है तथा मंदिर के चारो प्रदक्षिणा पथ बना रहा है। आप इसे प्लेटफार्म भी कह सकते हैं।
3.द्वार : यह पूर्वमुखी है, नित्य सर्वोदय की प्रथम किरण शिवलिंग का प्रथम स्पर्श करती है। द्वार के नीचे का भाग देहरी कहलाता है, जो अलंकृत शंख कमलदल युक्त है। द्वार के निम्न तल पर ही दाएं ओर गंगा मकरयुक्त बाएं ओर यमुना कच्छपयुक्त है। नागर शैली के मंदिर जो उत्तर से मध्य भारत में मिलते है, शिल्प रचना में गंगा-यमुना जो उत्तर भारत की प्रमुख नदियां हैं, उसकी अभिव्यक्ति है। नीचे ही दोनों ओर गजशार्दुल भी देखने को मिलते हैं। शिरोदल में तीन प्रतिमा क्रमशः दाएं से बाएं ओर सरस्वती, नटराज व गणेश उत्कीर्ण है। द्वार स्तंभ अलंकृत नायिका को दर्शा रहा है।
4.मंडप : द्वार से अंदर की ओर का भाग जहां साधक ध्यान साधना के लिए बैठता है, मंडप कहलाता है ये भी अलंकृत भाग है।
- गर्भगृह : विश्वनाथ शिवलिंग स्थापित है, जिसकी जलहरी उत्तर मुखी है । छत चक्रयुक्त नयनाभिराम है। पार्श्व में दीप आला भी था, जिसके दिव्य प्रकाश से शिवलिंग की अद्भुत आभा बनती थी।
- शिखर : यह बहुत ऊंचा है, जिसके चारो दिशाओं की भित्तियो में अद्भुत शिल्पांकन देखने को मिलता है।
दक्षिण भित्ति में अष्टभुजी त्रिपुरान्तक शिव, चतुर्भुजी स्थानक, विष्णु, रूद्र, चतुर्भुजी ब्रम्हा के साथ नायिका अप्सरा की काम प्रतिमाएं भी शोभायमान है।
पार्श्व भित्ति में चतुर्भुज भैरव, मिथुन, अग्नि, वीणापाणी सरस्वती, नायिका सहित गजशार्दुल की प्रतिमाएं हम देख सकते है।
उत्तर भित्ति में ब्रम्हा, रूद्रकाली, नरसिंह अवतार, अप्सराओं की मनमोहक सुरक्षित प्रतिमाएं शोभायमान हैं।
7.आमलक : मत्स्य चक्रावली कुछ कमल दल युक्त भी कहते है, देखने को मिलता है ।
8.कलश : यह शिखर का सर्वोच्च पाषाण भाग है। वर्तमान में स्वर्णआभा के पीतल पत्र से युक्त है।
स्कूल के बच्चों ने पुनः यह कब किसने बनाया? जानना चाहा …
बच्चों, कलचुरिकाल पुरातत्व के दृष्टिकोण से सदैव उल्लेखनीय रहा। अपना यह मंदिर 10 से 11वीं सदी का प्रतीत होता है, जब कर्णदेव का राज्य रहा।
यह मंदिर क्यों बनाया गया ?
प्राचीन समय में जंगल, गुफा, पहाड़ व एकांत में अल्प प्रवास के लिए केंद्र बनाए गए। बौधकाल में कामकला के प्रति अरुचि के कारण वंशवृद्धि भी एक प्रयोजन प्रतीत होता है। गृहस्थ से वैराग्य की ओर एक आध्यात्मिक मनोदशा रूपांतरण का प्रयोजन भी हो सकता है, क्योंकि मंदिर में अष्ट मैथुन व सांकेतिक रतिक्रिया का शिल्पांकन बहुतायत में उत्कीर्ण है।
सर, मंदिर क्षतिग्रस्त लगता है कुछ नुकसान भी हुआ होगा ?
हां बच्चों, मंदिर चूंकि बलुआ लाल पत्थर से बना है, जिसका क्षरण जल्दी होता है। आक्रांताओं के हमले भी हमारी विरासत पर हुए। कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा प्रतिमाएं चोरी भी हुई होंगी।
शासन की ओर से क्या हुआ ?
एक आक्रोश था प्रश्न में, मैने बताया आज भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर को राज्य संरक्षित धरोहर का दर्जा प्राप्त है।
सर, क्या पर्यटन के हिसाब से मंदिर को विकसित करना चाहिए?
हां बच्चों पेयजल एक समस्या है।
रात्रि में फ्लड लाइट की व्यवस्था की जा सकती है।
रास्ते में दोनो ओर प्रकाश युक्त मार्ग भी विकसित किया जा सकता है।
गार्डन व अल्पाहार के साथ रुकने के लिए काटेज भी बनाया जा सकता है।
बांधवगढ़ से कान्हा जाते समय पर्यटकों को यहां आकर्षित कर रोका जा सकता है।
भविष्य में ऑडियो विजुअल शो भी आयोजित जा सकते है।
उमरिया जिला पुरातत्व धरोहर से परिपूर्ण है, एक पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना मेरा सपना है जो कभी न कभी जरूर पूरा होगा।
सभी को आज विश्व धरोहर दिवस पर जानकारी मिली, नजदीक से पुरातत्व धरोहर को समझाने का अवसर मुझे मिला। सभी ने खूब फोटो-वीडियोग्राफी की। सभी ने मिलकर स्वल्पाहार किया।
अब सब पुनः अपने आर सी स्कूल के लिए बस से लौट गए ….
प्रस्तुति
प्रदीप सिंह गहलोत (प्राचार्य)
अवन्तिका विकटगंज
उमरिया (म.प्र.)
9755940185
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