Highlights
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बाँधवगढ़ सीट बनी हॉट स्पॉट
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दावेदारों की बढ़ी उम्मीदें
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कौन हैं ज्ञान सिंह
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क्या है वर्तमान में बांधवगढ़ विधानसभा के हालात
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बेटे को हाथ लगाने से पहले, बाप से बात कर
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किस नेता की बगावत पड़ेगी भारी
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किसे मिलेगी कमान
Vidhansabha Election MP 2023 : मध्यप्रदेश में लगभग दो दशकों से सत्ता में काबिज भाजपा ने 230 विधानसभा सीटों में चार बार मे 39,39,1 और 57 सीट कुल 136 सीटों में अपने पत्ते खोल दिए है।भाजपा की सूची देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव हरहाल में जीतना चाहती है। यही कारण है कि केंद्रीय मंत्री,सांसद सहित तत्कालीन शिवराज सरकार के दर्जनों मंत्रियों सहित विधायकों को पुनः मौका दिया गया है। सूची देखकर राजनैतिक जानकार कयास लगा रहे हैं कि भाजपा संगठन बहुत ज्यादा नए चेहरों पर विश्वास नही जता पा रही है।
बाँधवगढ़ सीट बनी हॉट स्पॉट
मध्यप्रदेश की 230 सीटों में अभी 94 सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नही की है हालांकि कांग्रेस की अभी एक भी सीट फाइनल नही हो पाई है।लेकिन भाजपा की इन 94 सीटों में एक सीट बाँधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र की है। जो लगातार भाजपा के पास तो है लेकिन वर्तमान में जिले में हुए कुछ घटनाक्रम के बाद हॉट स्पॉट बन चुकी है।
दावेदारों की बढ़ी उम्मीदें
चौथी सूची में भी बांधवगढ विधानसभा क्षेत्र का के उम्मीदवार की नाम की घोषणा न होंना क्षेत्र में चर्चा का विषय तो बना ही है साथ ही सूत्र बता रहे है दावेदारों ने भोपाल में डेरा डाल रखा है।
कौन -कौन है संभावित दावेदार
संभावित दावेदारों में कहा जा रहा है कि करकेली जनपद की पूर्व जनपद अध्यक्ष कुसुम सिंह, भाजपा नेता कैलाश सिंह, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ज्ञानवती सिंह के साथ साथ अर्जुन सिंह सैयाम का नाम शामिल है, ईन नामो के साथ साथ वर्तमान विधायक शिव नारायण सिंह का नाम तो चल ही रहा है इसके साथ साथ विधानसभा से लेकर जिले और देश की राजधानी भोपाल में एक बड़े नाम की सुगबुगाहट बड़ी तेजी से चल रही है। और स्वमेव ही यह नाम पुनः सुर्खिया बटोर रहा है यह नाम है पूर्व जनजातीय कार्य मंत्री ज्ञान सिंह का।
कौन हैं ज्ञान सिंह
देश की राजनीति में जब भाजपा अस्त्तिव में नही आई थी तबसे भाजपा की विचारधारा को लेकर उमरिया जिले की नौरोजाबाद विधानसभा क्षेत्र में जीत का परचम लहराने वाले नेता ज्ञान सिंह का नाम एक बार फिर बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है। नौरोजाबाद विधानसभा का 2008 के परिसीमन में नाम बदला कुछ क्षेत्र भी बदला लेकिन ज्ञान सिंह का दबदबा कायम रहा यह बात ज्ञान सिंह के राजनैतिक विरोधी भी मानते हैं की बांधवगढ़ विधानसभा में ज्ञान सिंह की सोशल इंजीनियरिंग बड़ी तगड़ी है.
क्या है वर्तमान में बांधवगढ़ विधानसभा के हालात
अगर बांधवगढ़ विधानसभा की बात करें तो इस सीट पर बीते कई पंचवर्षीय से हार का मुंह देख रही कांग्रेस बड़े ही उत्साह के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में उतारने के मूड में है साथ ही कांग्रेस भाजपा के वोट बैंक पर भी सेंध लगाने के फुल मूड में दिख रही है। इसके साथ ही पिछले महीने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं के द्वारा धरना प्रदर्शन के दौरान किए गए उपद्रव के बाद पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भीतर ही भीतर सत्ताधारी दल के खिलाफ काम करने में जुटी हुई है। वर्तमान में यदि बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं आया तो भाजपा के बने बनाये गढ़ पर कांग्रेस कब्जा जमा सकती है। यह बात लगभग चर्चा में भी है कि इस बार उमरिया जिले की दो विधानसभा सीटों में एक सीट कांग्रेस के कब्जे में जा सकती है। कांग्रेस की गोरिल्ला पद्धति से चुनावी तैयारी कांग्रेस के अनुभवी नेता अजय सिंह के नेतृत्व में चल रही है. यही कारण हैं की भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व फूक फूक कर कदम रख रहा है.
लेकिन भाजपा की पहली दूसरी तीसरी और चौथी सूची देखने के बाद यह तो कंफर्म हो गया है कि भाजपा किसी भी विधानसभा सीट पर अनुभवहीन चेहरे को उतारने के लिए तैयार नहीं है।
बेटे को हाथ लगाने से पहले, बाप से बात कर
समय समय पर हिंदी सिनेमा ने तत्कालीन मौजूदा परिद्र्स्य को जनता के सामने रखने का काम किया है. इस चुनावी सीजन में बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान की फिल्म जवान ने देश में धमाल मचा के रखा हुआ है। देश की वर्तमान व्यवस्था पर जबरदस्त कुठाराघात इस फिल्म के माध्यम से करने का काम किया गया है। लेकिन जितने इस फिल्म की चर्चा है उतना ही इसका एक डायलॉग बड़ा फेमस हो रहा है। “बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर”
हालांकि इस डायलॉग के साथ काफी कनफ्लिक्ट भी इस फिल्म के साथ जुड़ गए जवान फिल्म के इस डायलॉग की चर्चा बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में इसलिए प्रासंगिक हो जाती है। क्योंकि वर्ष 2016-17 बांधवगढ़ विधानसभा सीट से तत्कालीन कैबिनेट मंत्री ज्ञान सिंह ने विधायिकी छोड़ कर दिल्ली का रास्ता इख्तियार कर लिया था इसी दौरान जिला पंचायत सदस्य शिवनारायण सिंह को उपचुनाव में मौका मिला और शिवनारायण सिंह ने उसके बाद मुड़कर पीछे नही देखा और 2018 के विधानसभा चुनाव में जब प्रदेश में भाजपा की सत्ता चली गई उसके बाद भी बांधवगढ़ विधानसभा में जीत हासिल की।लेकिन 2023 में राजनैतिक धरती तलाश रहे जिले के अन्य दावेदारों के आ जाने से वर्तमान विधायक को टिकट पुनः मिलेगी यह संसय बना हुआ है पर जाने माने आदिवासी नेता ज्ञान सिंह ने ताल ठोक दी है।
यही कारण है कि भाजपा का गढ़ कही जाने वाली सीट अभी भी होल्ड में पड़ी हुई है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या अगर पार्टी 2 बार से लगातार जीत दर्ज कर रहे शिवनारायण सिंह को घर बैठती है तो इस सीट पर किसी नए चेहरे का दांव खेल सकती है या पूर्व सांसद ज्ञान सिंह को ही अपना उम्मीदवार बना सकती है।
किस नेता की बगावत पड़ेगी भारी
बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र को लेकर चौपाल से लेकर भोपाल तक चर्चा यही है कि सभी नामो में सबसे वजनदार नाम कद्दावर आदिवासी नेता ज्ञान सिंह का साबित हो रहा है। विधानसभा क्षेत्र बांधवगढ़ में 2 ऐसे नाम है जो विधानसभा क्षेत्र के बाहर के है हालांकि इसमें एक बड़ा नाम ज्योतिरादित्य खेमे की ज्ञानवती सिंह का है लेकिन कितनी मजबूती से ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने लोगो के लिए लॉबिंग कर पा रहे है इसमें बड़ी संसय की स्थिति है। वही शिवनारायण सिंह के द्वारा 2016 में विधानसभा चुनाव लड़ने के दौरान उनकी सीट से जिला पंचायत सदस्य के रूप में पहुँचे अर्जुन सिंह सैयाम की भी बांधवगढ़ से टिकट की जुगत में लगे हुए है। अर्जुन सिंह दबे पाँव मानपुर विधानसभा क्षेत्र से भी हाथ आजमा रहे थे,एक समय यह बात काफी चर्चा का विषय बनी थी जब जनजातीय कार्य मंत्री मीना सिंह का दौरा अर्जुन सिंह के क्षेत्र में हुआ था तो मंत्री के विरोध में नारेबाजी भी हुई थी. हलाकि अर्जुन सिंह की लाबिंग भी कमजोर नही आकी जा सकती है.दावेदारी की सूची में शामिल एक और नाम कुसुम सिंह का है, इनकी लॉबिंग भी ऊपरी स्तर पर तो तगड़ी है लेकिन जमीनी मजबूती उतनी मजबूत नही है जो वर्तमान परिस्थितियों से पार्टी को उबार सकें। पिछले विधानसभा चुनाव में कुसुम सिंह एक बड़ा नाम था इस बार कुसुम सिंह कितनी सफल होती है यह तो समय ही बता पाएगा लेकिन जमीनी स्तर पर कुसुम सिंह की बगावत का कोई बड़ा असर होगा यह कह पाना मुस्किल है.
इसके साथ ही एक और नाम कैलास सिंह का है जो ज्ञान सिंह ने नजदीकी रिश्तेदार की फेहरिस्त में शामिल है। कैलाश सिंह भी दावा कर रहे है की अगले उम्मीदवार के तौर पर उन पर ही पार्टी विश्वास जताएगी लेकिन यदि कैलाश सिंह को मौका नही मिलता तो इनके बगावती तेवर को सहने में सिर्फ ज्ञान सिंह की सक्षम नजर आएगे. क्योकि कैलाश सिंह की जमीनी पकड़ ज्ञान सिंह और शिवनारायण के बाद राजनैतिक जानकर तीसरे नम्बर की मान रहे है.
इन सबमें अगर भारी पड़ने की बात करें तो अगर पूर्व विधायक ज्ञान सिंह के इतर पार्टी किसी पर जताएंगी तो चुनाव निकालना पार्टी के लिए बड़ा मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि राजनैतिक जानकार बताते है कि तमाम सूची में बांधवगढ़ की नब्ज अगर किसी के पास है तो वो हैं ज्ञान सिंह।इसके पहले भी दशकों पूर्व ज्ञान सिंह ने ताल ठोकी थी जिसकी चर्चा गाहेबगाहे आज भी हो जाती है.
किसे मिलेगी कमान
हालाँकि तमाम दावे और कयास रखे रह जाएँगे जब भाजपा की पांचवी सूची सामने आ जाएगी. लेकिन कयासों का बाजार यह कह रहा रहा हैं की बांधवगढ़ में टाईगर जिन्दा हैं……
Article : Sanjay Vishwakarma