Mahashivratri 2023 : भस्मासुर के डर से भगवान शंकर ने यहाँ छिपकर बचाई थी जान आज भी है भोलेनाथ के त्रिशूल के निशान - खबरीलाल.नेट
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Mahashivratri 2023 : भस्मासुर के डर से भगवान शंकर ने यहाँ छिपकर बचाई थी जान आज भी है भोलेनाथ के त्रिशूल के निशान

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Mahashivratri 2023 : छिंदवाड़ा के जुन्नारदेव नगर की समीपस्थ ग्राम पंचायत जुन्नारदेव विशाला में स्थित पहली पायरी विशाला मंदिर को देश विदेश में ख्याति प्राप्त है। पायरी का अर्थ सीढ़ी होता है । इस स्थान को चौरागढ़ महादेव की यात्रा की पहली सीढ़ी माना जाता है । पहली पायरी मंदिर में मध्यप्रदेश सहित महाराष्ट्र के लोगों की भी विशेष आस्था है।

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कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ को भस्मासुर के डर से पहाड़-पहाड़ भागना पड़ा था। इसी दौरान भगवान भोलेनाथ चौरागढ़ की पहाड़ी में छिपने पहुंचे थे। मान्यता है कि चौरागढ़ जाने के लिए भोलेनाथ ने इसी स्थान से प्रवेश किया था इसलिए इस जगह को यात्रा की पहली सीढ़ी माना गया है । चौरागढ़ जाने वाले पैदल यात्री इस मंदिर के कुंड में स्नान करने के बाद मंदिर में पूजन करके ही अपनी दुर्गम यात्रा आरम्भ करते हैं । लाखों की संख्या में शिवभक्त यहां हर शिवरात्रि में मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं। यह जुन्नार देव नगर का अति प्राचीन मंदिर है जो पहली पायरी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार माना जाता है कि जब भस्मासुर भगवान शिव का वरदान प्राप्त कर भगवान शिव को भस्म करने के लिए उनके पीछे आने लगा तब भगवान शिव उससे बचने के लिए दौड़ कर सतपुड़ा की घने जंगलों में आए और यहां पर भगवान शिव का पहला चरण पड़ा इसीलिए इसे पहली पायरी कहा जाता है ।

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भगवान शिव के त्रिशूल से एक पेड़ कटा था वह पेड़ का तना आज भी यहां पर देखा जा सकता है ।इस मंदिर के अंदर एक प्राकृतिक कुंड भी मौजूद है जहां पहाड़ों से होते हुए पानी की एक निरंतर धारा साल के 365 दिन 24 घंटे बहती रहती है, मान्यता हैं कि यह जलधारा भगवान शिव की जटा में समाई मां गंगा का ही एक रूप है जोकि अप्रत्यक्ष रुप से यहां से होते हुए बहता है ।

मंदिर में महादेव शंकर, माता पार्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के आसपास देवी-देवताओं के कई मंदिर स्थित हैं. अर्धनारीश्वर महादेव मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, मां शेरावाली का मंदिर, देवी काली मंदिर सहित अन्य मंदिर यहां मौजूद हैं. यह मंदिर शहरी क्षेत्र से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है. ट्रेन और बस के माध्यम से श्रद्धालु मंदिर तक पहुंचते हैं. लोगों का यह भी मानना है कि भोलेनाथ जिन गुफाओं से होते हुए चौरागढ़ पहुंचे थे वो गुफाएं आज भी जंगलो में मौजूद हैं ।

यहां से पैदल यात्रा शुरू करने वाले शिव भक्त पदम पठार की कठिन चढ़ाई पार करते हुए 12 किमी की यात्रा कर सतघघरी पहुंचते हैं। यहां पर पानी के सात कुंड हैं, जो एक दूसरे से जुड़े हैं। पहले कुंड में फूल प्रवाहित करने पर वह सातों कुंड से बहता हुआ दिखाई देता है। यह महादेव यात्रा का पहला पड़ाव है। यहां विश्राम के बाद शिवभक्त आगे की यात्रा शुरू करते है।

सतघघरी के बाद शिवभक्त गोरखनाथ, मछिंदरनाथ की चढ़ाई को पार कर नागथाना होते हुए भूराभगत पहुंचते हैं। यह करीब 13 किमी की यात्रा है। यहां सांगाखेड़ा के भुराभगत मंदिर की परिक्रमा करने की प्रथा है। भूराभगत के दर्शन के बाद ही महादेव यात्रा पूरी मानी जाती है। इसके बाद छोटी भुवन, देनवा नदी, बड़ी भुवन होते हुए वे नंदीखेड़ा पहुंचते हैं फिर चौरागढ़ की कठिन चढ़ाई प्रारंभ करते हैं ।भुवन से लगभग साढ़े तीन घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद शिवभक्त चौरागढ़ पर्वत पर स्थित महादेव मंदिर में पहुंचते हैं और यहां मंदिर में भगवान शंकर की प्रतिमा के दर्शन करते हैं । यह यात्रा करीब 36 किलोमीटर लंबी होती है।

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