हार गया जिन्दगी की जंग जिनसे खून बेचकर भी जलाया घर का चूल्हा

एक परिवार के तंग हालात में पिता खुदखुसी ने लोगो के रोंगटे खड़े कर दिए जिसकी में होनहार बेटी अपंग होकर पांच साल से बिस्तर पर पड़ी है। ग्राहको को दी गयी उधार रकम वापस न देने से दुकान बंद हो गई।, लेनदार रकम वापसी का दबाव बनाने लगे, दो जून की रोटी के लाले पड़ गये गुजर बसर की जदोजहद इस कदर हो गयी कि  एक दिन घर चूल्हा जलाने के लिए खून बेचना पड़ा ।तो  दूध बिजली का बिल मकान का किराया इलाज के लिये पैसा कहां से आये…हुनरमंद बेटी को कुछ बनाने का ख्वाब जब सब  चकनाचूर हो गये तब समाज सरकार और प्रशासन से उम्मीद तोड़ चुके पिता ने ट्रेन के नीचे और पटरियों के ऊपर लेटकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी ।

सतना में आज सुबह मुख्त्यारगंज रेल्वे फाटक के पास घटी एक घटना की असल वजह ने लोगो की रूह कपा दी जिसमें सरकार के लुभावने दावे और सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है ये दर्द भरी कहानी है, ट्रांसपोर्ट नगर में रहने वाला प्रमोद गुप्ता के परिवार की है जो कृषि उपज  मंडी के पास सीमेंट और बिल्डिंग मटेरियल की दुकान खोलकर अपना और परिवार का गुजर बसर कर रहा था लेकिन , उसकी खुशी को शायद किसी की नज़र लग गई, होनहार हुनरमंद बेटी अनुष्का गुप्ता का एक्सीडेंट हो गया जिसमे काफी दावा ईलाज के बावजूद वह बिस्तर पर ही जीवन काटने को मजबूर है बेटी के ईलाज के खर्च बढ़ गये, दुकान के कर्ज तले,, गुजर बसर का साधन दुकानदारी भी चौपट हो गयी हालात इस कदर बिगड़ गये की एक दिन दो जून की रोटी के लाले पड़ गये पिता ने जब अपना खून बेचा तब जा कर घर का चूल्हा जल सका।  मेघावी छात्रा को सरकार के वो दावे जो होनहार बेटी के लिए किये गये धरे के धरे रह गये और एक पिता ने बेटी के संजोये सपने चकनाचूर होते देख मौत को गले लगा लिया

अनुष्का ने चुनोतियों से सामना करते हुए अपनी हुनर का परिचय दिया हुनरमंद अपंग बेटी ने एक राइटर की मदद से  76% अंक हासिल किये थे, और जब सतना कलेक्टर को पता चला तो उन्होंने बेटी अनुष्का गुप्ता को जिले की मेघावी छात्र घोषित करते हुये न सिर्फ प्रमाण पत्र दिया बल्कि समारोह आयोजित कर सम्मानित किया था, इतना ही नही देश के बड़े मेडिकल सेंटर में सरकारी खर्च पर उसका दवा ईलाज करने और उसके परिवार को पीएम आवास से घर, बीपीएल से गल्ला, पिता के रोजगार लिए मदद का वायदा किया था, लेकिन कलेक्टर सारे वायदे किसी नेताओं के वायदे की तरह साबित हुये, बेबस लाचार मजबूर पिता प्रमोद गुप्ता कलेक्टर के वायदे और सरकारी मदद की आस में रोजाना सरकारी दफ्तरों की देहरी में महीनों चक्कर लगता रहा लेकिन नतीजा सिफर ही रहा, थक हारकर पिता घर बैठ गया, लेकिन लेनदार उसका पीछा नही छोड़ रहे थे, परिवार का खाली पेट और बिस्तर में पड़ी बेटी का दुख उससे सहा नही गया, उसने समाज और रिश्तेदारों से भी मदद की आस लगाई लेकिन बेअसर साबित हुई, मजबूर बाप ने एक दिन जिला अस्पताल जाकर अपना खून बेचा तब घर का चूल्हा जला घर मे खाना बन सका, बेदर्द समाज की उपेक्षा सरकारी बेरुखी और आर्थिक तंगी से जूझते जूझते एक पिता टूट गया और उसने फैसला किया कि… “जिंदगी आ तुझे कर दूं कातिल के हवाले’ “ये तेरा रोज़ रोज़ का मरना मुझसे देखा नही जाता”….और सुबह 4:00 बजे हालात और सिस्टम के आगे टूट चुका पिता प्रमोद गुप्ता अपने निवास ट्रांसपोर्ट नगर से निकलकर मुख्तियार गंज रेलवे फाटक के पास पहुंचा और ट्रेन से कटकर खुदकुशी कर ली.. बेबस पिता ने इस बेरहम दुनिया को अलविदा कह दिया…जहाँ सरकारी दावे खोखले साबित निकले।

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