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Mating Season of Peacock : देखिए वीडियो मोरनी को रिझाने मोर पंख फैलाएँ आए नजर मोरनियों ने नही डाला दाना

सर्दियों का सीजन ख़त्म हुआ है और बसंत ऋतू चालू हो गई हैं,पेड़ों से पत्ते गिरने का दौर शुरू हो गया हैं बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व में इन दिनों न ज्यादा ठण्ड हैं और न ही ज्यादा गर्मी और मौसम और ...

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Sanjay Vishwakarma

सर्दियों का सीजन ख़त्म हुआ है और बसंत ऋतू चालू हो गई हैं,पेड़ों से पत्ते गिरने का दौर शुरू हो गया हैं बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व में इन दिनों न ज्यादा ठण्ड हैं और न ही ज्यादा गर्मी और मौसम और भी खुशनुमा हो गया है, इस खुशनुमा मौसम में बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व में इन दिनों मोर को पंख फ़ैलाऐ हुए नाचते हुए देखे जा सकता हैं,टाईगर सफारी के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में पहुँचे पर्यटकों को दो मोरों को 2 मोरनियों के आसपास अपने विशाल पंख फैला कर नृत्य करते हुए देखें गए हैं,इस खुबसूरत तस्वीर को पर्यटकों ने कैमरों में कैद कर लिया, मोर के नाचने की इस खूबसूरत वीडियो का विश्लेषण कर हम हैरान कर देने वाले कारण जानेगें की मोर अपने पंख कब और क्यों फैलाते हैं क्या हैं इसके पीछे का बायोलाजिकल कारण

मोर और मोरनी में क्या फर्क होता है

आप तो जानते ही है कि नर मोर की लम्बाई 215 सेंटीमीटर की अपेक्षा मोरनी की लम्बाई 95 सेंटीमीटर के आसपास ही होती हैं,और नर मोर मोरनी से ज्यादा आकर्षक लगते है,आप देखते ही जान जाएगे की मोर कौन हैं और मोरनी कौन हैं क्योकि  नर मोर के सिर पर एक बड़ी कलगी होती हैं वही मोरनी की कलगी छोटी होती हैं और मोर के लम्बे लम्बे सुंदर सजावटी पंखों का गुच्छा होता हैं,इनकी संख्या लगभग 150 के आसपास होती हैं,पर मोरनी के सजावटी पंख नही होते हैं.

मोर अपने पंख कब और क्यों फैलाता हैं

दरअसल सर्दियों के मौसम के बाद बसंत ऋतू (Spring) के सीजन आते ही प्रकृति का एक अलग ही स्वरुप दिखाई देता हैं, पेड़ पौधों से लेकर वन्यजीवों और पक्षिओं में एक आनंद की लहर छा जाती पेड़-पोधो से लेकर पशु-पक्षी तक सभी आनंदित हो जाते है. बसंत ऋतू मोर के लिए प्रणय का सीजन होता हैं और यह प्रणय का सीजन बरसात के पहले तक चलता हैं इस दौरन मोर वंश वृद्धि के यत्न प्रयत्न में लग जाते हैं. इस दौरान मोर अपने सुंदर सुंदर पंखों को फैला कर मोरनियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जुट जाते हैं.

मोर का मेटिंग सीजन कब होता हैं

कई वेबसाइट दावा करती हैं की मोर का मेटिंग सीजन बारिस के समय शुरू होता हैं लेकिन इस मामले में उप वनमंडलाधिकारी बांधवगढ़ सुधीर मिश्रा बताते हैं की मोर का मेटिंग सीजन बसंत से शुरू होकर बरसात के पहले ही खत्म हो जाता है क्युकी मोर मेटिंग के लिए मोरनी के सामने अपने पखों का प्रदर्शन करता हैं, बारिश में भीगने के बाद जिसमे दिक्कत भी जाती हैं और बारिश में मोर के पुराने पंख टूट कर गिरने भी लगते हैं. 

किस मोर को मोरनी करती हैं पसंद

दरअसल मोर का पंख फैलाना प्रणय निवेदन हैं लेकिन मोरनी को मनाने के लिए मोर को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती हैं,पर मोरनी किस मोर का प्रणय निवेदन स्वीकार करेगी यह तो मोरनी के विवेक पर ही निर्भर करता हैं,जिस मोर के पंख मोरनी को सबसे ज्यादा सुंदर लगते है और मौजूद सभी मोर के पंखों से बड़े होते है उस मोर को मोरनी द्वारा पसंद किए जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.

क्या हैं इस पसंद और नापसंद के बीच का वैज्ञानिक कारण

दरअसल जंगल का कानून “स्वस्थतम की उत्तरजीविता” (Survival of the fittest) के सिद्धांत पर चलता हैं,मतलब सीधा सा हैं जो फिट हैं स्वास्थ्य हैं वही जंगल में अपना जीवन जी पाएगा,मोरनी के सामने मोर भले 10 दिनों से अपने पंख फैलाए नृत्य करता रहे लेकिन मोरनी नर मोरों की उस भीड़ में उसी से संसर्ग करेगी जो पूर्णरूपेण स्वास्थ्य हो इसकी पहचान वह मोर के बड़े बड़े पंखों से करती है और जब उसे लगता हैं की जिसे वह चुन रही हैं वह मौजूदा मोर में सबसे स्वास्थ्य हैं तभी मोर और मोरनी के बीच संसर्ग हो पाता है.

देखिए वीडियो

आप जानते ही हैं की मोर के प्रणय का समय शुरुवाती समय बसंत ऋतू होती हैं पर पतझड़ के इस सीजन में मोर मोरनी को रिझाने का प्रयास कर रहें हैं वीडियो में दो मोर और दो मोरनी आसानी से देखी जा सकती हैं,दोनों मोर पंख फैलाएँ हुए देखे जा सकते हैं पर दोनों मोरनी दाना चुगने में लगी हुईं हैं और मोरों की तरफ नजर भी नही डाल रहीं हैं बेचारें इन मोरों को अपना प्रणय निवेदन स्वीकार करवाने के लिए न जाने कितना इन्तेजार करना पड़ेगा लेकिन मोरों के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी,1963 को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया था. वैसे आपको बता दें की हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका तथा म्यांमार का भी राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है.

मोर के आंसू पीकर मोरनी गर्भधारण करती है ???

अनादिकाल से ही मोर प्रारम्भ से ही मानव  के आकर्षण का केन्द्र बिंदु रहा है। अनेकानेक  धार्मिक कथाओं में मोर को बड़ा  दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना पाप  समझा जाता है। भगवान् श्रीकृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्त्व को दर्शाता है, साथ ही महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख्त पर बैठते थे, उसकी संरचना हुबहू मोर जैसी थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाये मोर। हीरों-पन्नों से जरे इस तख्त का नाम तख्त-ए-ताऊस’ रखा गया। अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं

लेकिन कुछ ऐसी किवदंतिया हैं जिनकी कोई वैज्ञानिक प्रमाणिकता नही है आपने लोगो को अक्सर कहते सुना होगा की मोरनी मोर के आंसू पी लेती हैं और उसी से आगे की वंश वृद्धि होती हैं, कहा तो यह भी जाता हैं की बारिश की पहली बूँद पीकर भी ये अपनी वंश वृद्धि करते हैं लेकिन ये सिर्फ मिथक मात्र है, दरअसल मोर और मोरनी की मेटिंग टाइमिंग कुछ ही सेकंड्स की होती है जिसे बरबस ही नही देखा जा सकता. यही कारण हैं की इस तरह की भ्रामक जानकारियाँ फैली हुई हैं मोर सहित सभी पक्षी ‘ ‘‘cloacal kiss’’ के जरिये प्रजनन करते हैं.

Artical by Aditya
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