Bandhavgarh Vishansabha Election 2023 : मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 का आगाज हो चुका है इक्का दुक्का सीटों को अगर छोड़कर बात करें तो एमपी की दोनों प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है।उमरिया जिले के बाँधवगढ़ विधानसभा में विधायक शिवनारायण सिंह को भाजपा ने आधा दर्जन दावेदारो में से में चुनकर मैदान में उतारा है वही कांग्रेस में भी अमूमन इसी हालात में से निकलकर सावित्री सिंह के नाम की घोषणा कांग्रेस ने की है।
दोनों पार्टियों में दावेदारों में फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा से अधिकतर गोड़ समाज के दावेदारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन कांग्रेस से कोल समाज,बैगा समाज के दावेदारों ने भी अपना दमखम दिखाया है। टिकट न मिलने से कहा भगदड़ मचेगी और कहा पार्टी के साथ मिलकर जीत की ओर बढेंगे फिलहाल यह दोनों राजनैतिक पार्टियों के लिए चिंतन के साथ साथ आमजन के लिए चुनावी चर्चा का विषय है।
कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री सिंह और भाजपा प्रत्याशी शिवनारायण सिंह आमने सामने है। फौरी तौर पर कोई कमतर नजर नही आ रहा है। लेकिन बांधवगढ़ विधानसभा जिसे पूर्व में नौरोजाबाद विधानसभा के नाम से जाना जाता था इसके इतिहास के साथ साथ एक और इतिहास है जो पूरे 30 वर्ष पुराना है। चुनावी वर्चस्व की इस लड़ाई को समझने के इए वर्ष 1993,1996,2008,2017 और 2018 के चुनावों पर नजर डालनी होगी.
पढ़ते पढ़ते ही आप समझ जाएँगे की भाजपा- कांग्रेस के इतर यह चुनाव दोनों उम्मीदवारों के लिए प्रतिष्ठा का विषय भी है.
विधानसभा चुनाव 1993
विधानसभा चुनाव 1993 की बात की जाए तो वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री सिंह के रिश्ते में ससुरअर्जुन सिंह धुर्वे और पूर्व कैबिनेट मंत्री ज्ञान सिंह के बीच सीधी टक्कर हुई थी। जिस चुनाव में ज्ञान सिंह को 23432 मत मिले थे वही अर्जुन सिंह धुर्वे को 18670 मत प्राप्त हुए थे। मत प्रतिशत की अगर बात करें तो ज्ञान सिंह को पड़े मतों का कुल 46.10 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे वही अर्जुन सिंह धुर्वे को 36.73 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे । और इस तरह ज्ञान सिंह ने 4762 मतों से जीत हासिल की थी।
विधानसभा उपचुनाव 1996
उपचुनाव 1996 राजनैतिक मायनो में काफी अहम माना जाता है,क्योंकि यह वही उपचुनाव था जिसमे भाजपा की कद्दावर आदिवासी नेत्री मीना सिंह ने पहली बार विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी।दरअसल विधानसभा की सीट छोड़कर ज्ञान सिंह को लोकसभा में भेजने की तैयारी भाजपा संगठन ने की थी इसलिए इस उपचुनाव की कमान युवा नेत्री मीना सिंह के हाथों आई और मीना सिंह ने इस चुनाव में 1993 में ज्ञान सिंह से पराजित हुए अर्जुन सिंह को पुनः पुनः परास्त कर दिया।दो बार लगातार चुनाव हारने के बाद अर्जुन सिंह धुर्वे ने विधानसभा चुनाव से दूरियां बना ली।
ससुर के बाद बहु ने संभाला मोर्चा
लेकिन अर्जुन सिंह के चुनावी संघर्ष को जारी रखा उनकी बहू सावित्री सिंह धुर्वे ने 2008 में परिसीमन के बाद उमरिया विधानसभा और नौरोजाबाद विधानसभा में अमूलचूल परिवर्तन कर नौरोजाबाद विधानसभा को बांधवगढ़ विधानसभा का नाम दे दिया गया और दूसरी विधानसभा का नाम मानपुर दिया गया। विधानसभा का नाम बदला लेकिन वर्चस्व कायम भाजपा का रहा।
विधानसभा चुनाव 2008
विधानसभा चुनाव 2008 में भाजपा नेता ज्ञान सिंह के सामने सावित्री सिंह को कांग्रेस ने मैदान में उतारा लेकिन सावित्री सिंह 15148 के बड़े अंतराल से चुनाव हार गईं। इस विधानसभा चुनाव में बांधवगढ़ से कुल 9 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे जिसमें 41.14 प्रतिशत मत ज्ञान सिंह को मिले वही 26.75 प्रतिशत मत सावित्री सिंह धुर्वे को मिले।
विधानसभा चुनाव 2013
लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में सावित्री सिंह को दोबारा मौका ना देकर कांग्रेस नेता प्यारेलाल बैगा को मौका दिया। इस चुनाव को भी ज्ञान सिंह ने 18138 मतों से जीत हासिल की।
विधानसभा उपचुनाव 2017
शहडोल सांसद दलपत सिंह की आकस्मिक मृत्यु के बाद तत्कालीन जनजातीय कार्य मंत्री ज्ञान सिंह को भाजपा ने शहडोल संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतारा और ठीक 20 वर्ष पहले जैसा घटनाक्रम हुआ इस बार उपचुनाव में मौका मिला जिला पंचायत सदस्य शिवनारायण सिंह को और कांग्रेस ने सावित्री सिंह धुर्वे को अपना उम्मीदवार घोषित किया। उपचुनाव में 25476 मतों से शिवनारायण सिंह ने चुनाव जीत लिया।
विधानसभा चुनाव 2018
विधायक शिवनारायण सिंह को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया साथ ही कांग्रेस से ध्यान सिंह मैदान के उतारे गए। इसके साथ-साथ भाजपा नेता सतीलाल बैगा ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतर गए। 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवनारायण सिंह 59158,ध्यान सिंह 55255 और सतीलाल बैगा ने 18663 मत प्राप्त किए और शिवनारायण सिंह ने 3903 मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया।हालांकि मतों का यह अंतर कांग्रेस की लोकप्रियता से नही बल्कि सतीलाल बैगा के बगावत करने से आए थे ऐसा राजनैतिक जानकारो का कहना है।
30 साल बाद बने समीकरण
30 वर्ष बाद चेहरे बदल गए है लेकिन वही वर्चस्व की लड़ाई सामने है। लाड़ली बहना योजना जैसी योजनाओं की बदौलत सत्ता में पुनः आने का दावा करने वाली भाजपा बांधवगढ़ में भी एक बार फिर पार्टी के लिए संकट मोचक कहे जाने वाले कद्दावर नेता को पर्दे के पीछे रखकर अपने इतिहास को दोहराने के लिए कटिबद्ध नजर आ रही है।वही कांग्रेस ने भी इस बार बांधवगढ़ विधानसभा में भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले नगर में पूरी ताकत लगा रखी है। दो बार अर्जुन सिंह धुर्वे और दो बार खुद सावित्री सिंह ने हार का सामना किया है। यह तो तय है कि कांग्रेस उम्मीदवार पूरी ताकत के साथ साथ सतर्कता के साथ चुनावी मैदान में उतरी है। मतदान 17 नवंबर को है मतदान करने जरूर जाएं।