देशभर में होलिका दहन के लिए आग जलाने की व्यवस्था माचिस या लाइटर से की जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर के देपालपुर में आज भी होलिका दहन के लिए आदि काल की परंपरा ही निभाई जाती है। यहां धाकड़ सेरी मोहल्ले में चकमक पत्थरों की मदद से आदि काल की तर्ज पर ही आग उत्पन्न कर होलिका का दहन किया जाता है। इस कार्य को नगर पटेल रामकिशन धाकड़ (पटेल)अंजाम देते हैं। धाकड़ परिवार 9 पीड़ियों से होलिका दहन करते आ रहे हैं।
यहां नगर के वार्ड क्रमांक 1 धाकड़ सेरी में श्रीराम मंदिर के सामने सालों से होली चकमक पत्थर से जलाई जाती है। इस पंरपरा को यहां का नागर परिवार पीढ़ियों से निभाता चला आ रहा है। वर्तमान में यहां के निवासी रामकिशन पटेल (68 वर्षीय) अपने घर से चकमक पत्थर रूई में लपेटकर लाते हैं और उसे लोहे से रगड़ते हैं। इससे आग उत्पन्न होती है और रूई जलने लगती है। इस जलती हुई रूई से ही होली के चारे में आग लगाकर फिर होली दहन किया जाता है। धाकड़ पटेल परिवार यह काम पीढ़ियों से करता चला आ रहा है।
रामकिशन पटेल बताते हैं कि पहले पिताजी दयाराम पटेल, दादाजी पुनाजी पटेल, परदादा भेरा पटेल और इससे भी पहले से हमारा परिवार यह परंपरा निभाता चला आ रहा है।
हीरे की तरह संभाल के रखा है चकमक पत्थर
नागर ने बताया कि चकमक पत्थर को एक बॉक्स में संभाल के रख रखा है। जिसे वर्ष में एक बार होली पर ही निकाला जाता है।
क्या है चकमक पत्थर
प्राचीनकाल में आदि मानव इसका उपयोग आग जलाने के लिए करते थे। यह समुद्र किनारे पाया जाता है। एक कठोर तलछटी चट्टान होती है। यह एक मोइक्रो क्रिस्टलाइऩ क्वार्ट्ज का रूप होता है।