छतरपुर/रिक्की सिंह : जिले में प्रशासनिक लापरवाही अपने चरम पर पहुंच चुकी है। मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने पिछले वर्ष जुलाई में आदेश जारी किया था कि सभी अधिकारी और कर्मचारी सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक अपने मुख्यालय पर मौजूद रहेंगे, लेकिन यह आदेश छतरपुर के अफसरों के लिए मज़ाक बनकर रह गया है।
स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि जिले के एसडीएम से लेकर इंजीनियर और अन्य सरकारी कर्मचारी तक अपने मुख्यालय पर बैठने की बजाय रोजाना छतरपुर से अपडाउन कर रहे हैं। इससे न केवल आम जनता परेशान हो रही है, बल्कि प्रशासनिक ढांचा भी पूरी तरह चरमरा चुका है।
कलेक्टर की पकड़ कमजोर, अफसर बेलगाम !
इस लचर व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार कलेक्टर पार्थ जायसवाल खुद हैं। उनके अधीनस्थ अफसरों पर पकड़ इतनी कमजोर है कि अधिकारी उनकी बातों को गंभीरता से लेने को तैयार ही नहीं हैं।
एसडीएम हों या जनपदों में तैनात अधिकारी, सभी बिना डर के अपनी मनमानी कर रहे हैं। कोई अपने मुख्यालय पर बैठना नहीं चाहता, कोई सरकारी गाड़ियों का निजी उपयोग कर रहा है, तो कोई ऑफिस का समय खत्म होते ही छतरपुर भाग जाता है।
कलेक्टर केवल निरीक्षण करने और आदेश जारी करने तक सीमित हैं, लेकिन अफसरों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। अगर जिले का मुखिया ही अपने अधिकारियों पर शिकंजा कसने में नाकाम साबित हो रहा है, तो फिर व्यवस्थाएं सुधरने की उम्मीद किससे की जाए?
मुख्यालय से नदारद अफसर, जनता परेशान
सूत्रों के मुताबिक, जिले के गौरिहार एसडीएम बलवीर रमण, राजनगर एसडीएम प्रशांत अग्रवाल, बड़ामलहरा एसडीएम गोपाल शरण पटेल और नौगांव एसडीएम काजोल सिंह नियमित रूप से छतरपुर से अपडाउन कर रहे हैं। इसके अलावा बहुत से अधिकारी कर्मचारी है जिनकी पदस्थापना जिले अन्य क्षेत्रों में है लेकिन वह अपना ठिकाना पदस्थापना स्थल पर नहीं बनाए है। जहां वह एक तो समय पर नहीं पहुंचते दूसरा समय से पहले घर निकल जाते है। जनता को उनकी समस्याओं को लेकर घंटों मुख्यालय में इंतजार करना पड़ता है, लेकिन जिम्मेदार अफसर वहां मौजूद ही नहीं होते। अगर अनुविभाग में कोई आपातकालीन घटना होती है, तो अफसरों को वहां पहुंचने में डेढ़ से दो घंटे का समय लग जाता है। क्या इसी को सुशासन कहते हैं?
इसी तरह जनपद पंचायतों में तैनात सहायक यंत्री और उपयंत्री भी अपने मुख्यालय पर न रहकर रोजाना अपडाउन करते हैं, जिससे विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।
पूर्व कलेक्टर ने दिया था आदेश, पर तबादले के बाद फिर ढर्रा चालू !
छतरपुर के पूर्व कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने अपने कार्यकाल में सभी अधिकारियों को मुख्यालय पर रहने के सख्त निर्देश दिए थे। जिससे प्रशासन में कुछ सुधार भी देखने को मिला था। लेकिन जैसे ही उनका तबादला हुआ, पूरी अफसरशाही फिर से पुरानी मनमानी पर लौट आई। शैलेंद्र सिंह एक कठोर स्वभाव के और सख्त प्रशासनिक अधिकारी माने जाते हैं उनके कार्यकाल में अधिकारियों में हमेशा दहशत रहती थी।
कलेक्टर पार्थ जायसवाल को चाहिए कि :
- सभी एसडीएम और जनपद अधिकारियों को सप्ताह में कम से कम तीन दिन मुख्यालय में रात्रि निवास अनिवार्य किया जाए।
- जो अधिकारी और कर्मचारी मुख्यालय पर नहीं रहते, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
- शासकीय वाहनों के दुरुपयोग पर रोक लगाई जाए और अपडाउन करने वालों से ही खर्च की वसूली की जाए।
- मुख्यालय से गायब रहने वाले अफसरों की सार्वजनिक लिस्ट जारी कर जनता को बताया जाए कि कौन-कौन ड्यूटी से भाग रहा है।
अगर कलेक्टर अब भी सख्ती नहीं दिखाते, तो जनता को यह मान लेना चाहिए कि पार्थ जायसवाल की प्रशासन पर पकड़ पूरी तरह ढीली है और वे अफसरशाही के आगे बेबस हो चुके हैं। अब देखना यह है कि क्या पार्थ जायसवाल मोहन सरकार के आदेशों को सख्ती से लागू कर पाएंगे, या फिर प्रशासनिक निकम्मापन यूं ही चलता रहेगा?