पत्रकार पोहा वाला : वैसे तो मीडिया को इस देश का चौथा स्तम्भ कहा जाता है,लेकिन जब मीडिया ही मीडियाकर्मी के लिए दमघोंटू माहौल बना दे तो सोशल मीडिया पारम्परिक मीडिया का विकल्प बन जाता है, ऐसी ही एक बानगी देखने को मिली मीडिया जगत की उस गली में जहाँ खुद को स्थापित करने की सोच हर एक युवा पत्रकार की होती है। जी हां हम बात कर रहे है इंडिया टुडे ग्रुप के उस कार्यालय के सामने की जहां खड़े होकर युवा उस ऑफिस में काम करने के दिवास्वप्न देख डालते है।लेकिन इंडिया टुडे के उस आफिस से ज्यादा उसके सामने लगे पोहे के इस स्टाल के चर्चे ज्यादा हैं जिसे किसी सामान्य युवक ने नही बल्कि मीडिया जगत में दशकों बिता देने वाले युवा पत्रकार ने लगाया है।पत्रकार पोहा वाला के नाम से लगे इस स्टाल की चर्चा देशव्यापी हो गई। अभी तक आपने पढ़ा होगा कि पत्रकार पोहेवाला के पास एडिटर स्पेशल पोहा और रिपोर्टर स्पेशल पोहा मिल रहा है लेकिन अब आप उस कड़वे सच से रूबरू होंगे कि कैसे आफिस पॉलिटिक्स का शिकार हुए ददन विश्वकर्मा पत्रकार से पत्रकार पोहावाला बन गए।
क्या हुआ था 15 दिसंबर की शाम
रोजमर्रा की तरह ददन विश्वकर्मा तय समय मे ऑफिस पहुँचकर बाकी दिनों की तरह ही अपना टास्क पूरा कर रहे थे,शाम को ऑफ होने के बाद जैसे ही घर जाने के लिए ददन निकल ही रहे थे कि पता चला कि HR का बुलावा आया है,HR के केबिन में जब ददन पहुँचे बातो बाकी दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही शान्ति मिली HR साब भी अपने आप को व्यस्त दिखाने और बताने के लिए आफिस लैपटॉप में व्यस्त थे,लेकिन अचानक HR बोल पड़े ददन जी कंपनी आर्थिक मंदी से गुजर रही है और अब कंपनी आपको आगे नही रख पाएगी आप अपना लैपटॉप और बाकी चीजे जमा कर दीजिए,ददन अपने केबिन में पहुँचे तो उन्होंने पाया कि उनका मेल भी तत्काल बन्द कर दिया गया है। खैर भारी मन से ददन से बाकी फॉर्मिलिटी पूरी कर घर आ गए। हालांकि जिस दौरान ज़ी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया उस दौरान ददन विश्वकर्मा एक बड़ी मेडिकल इमरजेंसी के दौर से गुजर रहे थे।
चार लोगों की पॉलिटिक्स का शिकार हुए ददन
मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग के छत्तीसगढ़ से लगे जिले अनूपपुर से ताल्लुक रखने वाले ददन विश्वकर्मा बताते है कि वो अपने ही आफिस में कार्यरत चार लोगों की पॉलिटिक्स का शिकार हो गए हैं साथ ही वो पी – पॉलिटिक्स का शिकार होने की बात भी करते हैं लेकिन न तो उन्होंने उन चारों का नाम बताया जिनकी कूटरचना का वो शिकार हुए है और ना ही पी पॉलिटिक्स के बारे में बताया कि क्या है ये पी पॉलिटिक्स लेकिन ददन बताते है कि जब वो पत्रकार से पत्रकार पोहा वाला बन गए, हालांकि चर्चा आज ऐसी भी है कि सोशल मीडिया में चली बयार से HR के केबिन के जब पर्दे हिल उठे तो आज HR भी दबे कदम पत्रकार पोहा वाला के स्टाल में पहुँच गए और ददन से कहा कि ज़ी का नाम मत लीजिए,पत्रकार पोहा वाला के स्टाल में खड़े जानकरों की माने तो HR साब को ज़ी से ज्यादा अब खुद के नौकरी की चिंता सताने लगी है। क्योंकि ये बातें अब ज़ी के बिग बॉस तक भी पहुँच रही हैं।
3 माह तक ढूढ़ते रहे नौकरी
ददन विश्वकर्मा बताते है कि 15 दिसंबर को जबसे ज़ी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था तब से ददन अन्य संस्थानों में नौकरी की तलाश में जुट गए,डेढ़ दशक तक देश के जाने माने संस्थानों में काम कर चुके ददन को कही ठिकाना नही मिला इसी बीच फरवरी के आखिरी सप्ताह में उनकी बेटी ने जन्म लिया और मार्च खत्म होते होते ददन एक पत्रकार से आगे निकल कर पत्रकार पोहावाला बन गए हालांकि ददन के विघ्नसंतोषी मित्रों को अब यह रास नही आ रहा है कि जिसे हमने षडयंत्र पूर्वक फायर करवाया अब उनसे एक नया मुकाम बनाने की जिद ठान ली है।
मन मे मेरे किसी के किए कोई मलाल नही
पोहे की दुकान में अब व्यस्त ददन विश्वकर्मा बताते है कि जिन चार सह सहकर्मियों ने मेरे साथ ऑफिस पॉलिटिक्स की उनके लिए और संस्थान के लिए मेरे दिल मे अब कोई मलाल नही है,अब आगे जो आप पढेंगे इससे उन चार सहकर्मियों के दिल मे जरूर मलाल हो जाएगा क्योंकि पत्रकार पोहावाला के नाम से अब ददन विश्वकर्मा की दुकान चल पड़ी है देश के नामी गिरामी पत्रकार एक कदम आगे आकर ददन विश्वकर्मा की हौसला आफजाई कर रहे हैं।
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संजय विश्वकर्मा
TV Journalist