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Maharaj Movie Review : मिस्टर परफेक्शनिस्ट के बेटे जुनैद की पहली फ़िल्म महाराज की कैसी हैं कहानी 

mr perfectionist आमिर खान के बेटेजुनैद खान की पहली फिल्म महाराजओटीटी प्लेटफॉर्मनेटफ्लिक्स पररिलीज हो चुकी है.इस फिल्म का निर्देशन सिद्धार्थ भी मल्होत्रा के द्वारा किया गया है.वही इस फिल्म में जुनैद खान के साथ जयदीप अहलावत और शरवरी ,शालिनी पांडे मुख्य किरदार में देखे जाएंगे.आईए देखते हैं, जुनैद खान की फिल्म का रिव्यू 

फिल्म इंडस्ट्री में मिस्टर परफेक्शनिस्ट के रूप में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान की खान की बेटे के करियर की शुरुआत सिद्धार्थ पी मल्होत्रा की फिल्म से शुरू हो गई है. यह फिल्म शुरुआत से ही विवादों के घेरे में आ गई थी कानूनी लड़ाई जीतने के बाद में यह नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. सौरव शाह द्वारा लिखी गई किताब महाराज पर आधारित इस फिल्म को बताया जा रहा है.लेकिन डिस्क्लेमर में यह भी लिखा गया है कि यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित नहींहै. बात अगर फिल्म इस फिल्म की जाए तो यह फिल्म 1962 के महाराज लेवल मामले पर आधारित बताई जा रही है.जुनैद खान के द्वारा करसनदास मुलजी के कैरेक्टर पर काम किया गया है.वही जयदीप अहलावत ने वल्लभाचार्य संप्रदाय  के प्रमुखों में से एक जदुनाथजी बृजरतनजी महाराज के किरदार पर नजर आएंगे.वहीं शालिनी पांडे का किरदार एक भोली भाली लड़की का है इसके साथ ही शरवरी वाघ को एक शरारती चुलबुली लड़की के रूप में दिखाया गया है.

Story of Maharaj Movie 

महाराज की कहानी करसनदास (जुनैद खान) के जन्म से शुरू होती है। फिल्म निर्माता को इस बात के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने फिल्म में 5-8 मिनट का एक सेगमेंट रखा है, जिसमें एक युवा जिज्ञासु लड़के को दिखाया गया है, जिसके पास पूछने के लिए बहुत कुछ है। उसके साहसी व्यक्तित्व में निखार आता है और दर्शकों को उसकी मानसिकता को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है। अपना बचपन अपने गांव में बिताने के बाद, करसनदास दस साल की उम्र में अपनी मां की मृत्यु के बाद बंबई में चला जाता है। 

करसनदास की जन्म से शुरू होती है महाराज फिल्म की कहानी. जीवन की शुरुआती दौर मेंकरसनदास को बहुत ही जिज्ञासु औरउत्साही व्यक्तित्व के रूप में दिखाया गयाहै.किसी कदर बचपन गांव में बिताने के बाद मेंमां की मौत के बाद में करसनदास मुंबई की ओर रुख कर लेता है.इसके बाद जुनैद खान को अब करसनदास की एक वयस्क के रूप मेंदिखाया जाता है.करसनदासअब गुजराती पैटर्न पर धारा प्रवाह है गुजराती बोलते हुए देखे गए हैं और पारंपरिक धोती कुर्तामें भी करसनदास को देखा जानेलगा.समय के साथ में करसनदास की एक मंगेतर होती है किशोरी नाम कीजिसे करसनदास ने समझो जाकर के उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा.और उसनेकरसनदास की बात को मानकर की अपनी पढ़ाई भी पूरीकी.हालांकि दोनों के बीच में प्यार का प्रवाह बढ़ता चला गया और दोनों ने शादी करने का मन बनाया था लेकिनउनकी प्लानिंग पूरी नहीं हो पाती है.किशोरी के प्यार मेंदीवाना हुआ करसनदास जबअपने धार्मिक गुरुके पास में सुझाव मांगने के लिए जाता है.तो उसे धार्मिक गुरु के द्वाराकिशोरी से दूर जाने का सुझाव दे दिया जाता है.इसके बाद करसनदास का जीवन काफी संघर्ष में हो जाता है.और अपने ही क्षेत्र के प्रभावित लोगों के खिलाफ हुए बड़ी कानूनी लड़ाई को लड़ता हुआ दिखाया जाताहै. करसनदास के द्वारा लड़ी गई है कानूनी लड़ाईएक लंबे अरसे तक याद रखी जाने वाली ऐतिहासिक लड़ाई के रूप में देखी जाती है.इस कानून लड़ाई के बाद मेंकृष्ण दास का पूरा जीवन तहस-नहस हो जाता है.

महाराज की स्टोरी और निर्देशन

सिद्धार्थ पी मल्होत्रा के द्वाराफिल्म के लिए चुनी गई है कहानी बहुत ही कठिन है.क्योंकि इस फिल्म में धर्म और अंधविश्वास के नाम पर लड़की को धोखा नहीं दिया गया बल्कि उसे इसलिए धोखा मिल गया क्योंकि वह अपने राइट्स और को लेकर के अभिनयाग्य है साथ ही वह इतनी भोली है कि वह सही और गलत के बीच में अंतर नहीं कर पा रही है.इस फिल्म में महाराज के किरदार को और भी सशक्त बनाया जा सकता था अगर कहानी और अधिक प्रभावित होतीतो.महाराज एक सामाजिक नायक हैं जो दुनिया को एक नई दिशा देते हैं.हालांकि महाराजका कहीं-कहीं अंदाज नाटक की लगा जो काफी नीरस भी दिखाई दियाहै.

इस फिल्म के प्रोडक्शन डिजाइनर सुब्रत चक्रवर्ती और अमित राय के द्वारा बहुत ही शानदार काम किया गयाहै.ऑडियंस कोई बड़ी आसानी सेपूर्ण स्वतंत्रता युग में ले जाकर के रख देते हैं.ऑडियंस भी अपने आप को उसे युग में जीता हुआ पाती है.इस फिल्म के डिजाइन डायलॉग और म्यूजिककाफी उम्दा कहा जा सकते हैं.इस फिल्म के कुछ ऐसे डायलॉग हैं जो आने वाले समय में काफी फेमस होने वाले हैं.राइटर स्नेह देसाई और विपुल मेहता ने बहुत ही शानदार डायलॉग लिखे हैं जैसे ‘सवाल न पूछे वो भक्त अधूरा है और जो जवाब न दे सके वो धरम अधूरा है’ एक और बहुत बढ़िया डायलॉग हैइस फिल्म का ‘धर्म से ज्यादा हिंसा वैसे भी कोई युद्ध नहीं है।’ एकऔर डायलॉग ‘धार्मिक मान्यताएं बेहद निजी, व्यक्तिगत और पवित्र हैं’  बहुत ही प्रभावी और शानदार साबित होती हैं.हालांकि फिल्म कहीं पास बहुत ही बोरिंग भी लगती है ऐसा लगता है कियहां फॉरवर्ड बटन इस्तेमाल दर्शन कर सकते हैं.

महाराज में एक्टिंग 

आमिर खान के बेटे जुनैद खान अपने पिता की तरह हीऐतिहासिक रूलकरने में सफल देखे गए हैं.फिल्म में उनकी है-भाव बहुत ही अच्छे हैं और किरदार में भी वह बहुत अंदर गहराई तक उतर चुके थे.हालांकि कहीं-कहीं उनके डायलॉग डिलीवरी में ऐसा लगा कि वह किसी थिएटर के नाटक में काम कर रहे हैं.अपने पिता की तरह ही जुनैद की डांसिंग स्किल भी काफी अच्छीहै.पूरी फिल्मेंअभिनेता जैदी के खिलाफ भी में बहुत ही अच्छी लड़ाई लड़ते देखगए हैं.जयदीप अहलावतवास्तव में इस फिल्म के मुख्य किरदार हैं.हालांकि जुनैद की तुलना में जयदीप के पास में काफी कम डायलॉग हैं लेकिन एक हबीब फेस चेहरे के भाव और चलने का बिंदास अंदाज और डायलॉग डिलीवरीमें काफी उम्दा  नजर आते हैं, शालिनी पांडे के किरदार की बात करें तो इसे देखने के बाद में आपको अर्जुन रेड्डी की याद आ सकती है.बिना किसीकंप्लीमेंट्री केवह एक भरोसेमंद प्रेमी लड़की की भूमिका में देखा जा सकता है.हालांकि इसे जुड़ा शरवरी वाघ की डायलॉग डिलीवरी और संवाद में पकड़ तो काफी अच्छी है लेकिन इतना ज्यादा चुलबुलापन फिल्म के हिसाब से मैच नहीं करता है.

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