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खजुराहो में 51वें नृत्य समारोह के चौथे दिवस की शाम में कथक और ओडिसी नृत्यों ने मोह लिया मन

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खजुराहो में 51वें नृत्य समारोह के चौथे दिवस की शाम में कथक और ओडिसी नृत्यों ने मोह लिया मन
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खजुराहो। नृत्‍य में जीवन का आनन्‍द है उमंग है उल्‍लास है। नृत्‍य हमारी संस्‍कृति को आनंददायी अभिव्‍यक्ति देते हैं और खजुराहो नृत्‍य समारोह भारतीय संस्‍कृति का अनूठा उदाहरण है। एक हजार वर्ष प्राचीन मंदिरों की अलौकिक आभा में देश के सुप्रसिद्ध साधनारत कलाकार और शाम के धुंधलके में अपनी आंखों के सामने स्‍वप्‍न, कल्‍पना और विचार को साक्षात होता देखने के लिए आतुर कला रसिक।

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन छतरपुर के सहयोग से आयोजित 51वाँ खजुराहो नृत्य समारोह के चौथे दिवस की शाम में कथक और ओडिसी नृत्यों की प्रस्तुति ने सुधिजनों को नृत्य के जादुई संसार की यात्रा कराई।

पहली प्रस्तुति मध्यप्रदेश की सुश्री पलक पटवर्धन द्वारा कथक नृत्य की रही। जयपुर घराने की परम्परा का अनुगमन करने वाली पलक पटवर्धन ने सर्वप्रथम ठाकुर जी से प्रार्थना “भक्त वत्सलम” की प्रस्तुति दी। इसके बाद आकर्षक ढंग से भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला का वर्णन नृत्य से किया। बासंती रंगों की वेशभूषा में जब उन्होंने प्रेम भाव के साथ कृष्ण रास लीला का दर्शन कराया तो सुधिजनों ने वृन्दावन सा अनुभव प्राप्त किया। बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है और प्रकृति सौंदर्य को प्राप्त हो चुकी है। इस मधुमास का प्रिय उत्सव होली को पलक एवं उनके साथियों ने होली प्रस्तुति के माध्यम से दिखाया। जिसमें श्री कृष्ण राधा और गोपियां साथ में होली खेल रही हैं। अंत में उन्होंने आश्रय का पद प्रस्तुत कर विराम दिया। उनके साथ आयुषी त्रिवेदी, काव्या शर्मा, झलक चावड़ा, तन्वी गोलेचा, जान्हवी क्षीरसागर ने मंच साझा किया। संगीत एवं पद रचना मुखिया श्री अभिषेक व्यास, उद्घोषणा एवं पढ़ंत पं. माधव तिवारी, सितार वादन डॉ. विनीता माहुरकर, गायन एवं हारमोनियम श्री कुलदीप दुबे, तबला वादन श्री विनायक शर्मा, पखावज वादन श्री ऐश्वर्य आर्य ने किया।

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दूसरी प्रस्तुति सुप्रसिद्ध ओडिसी नृत्य कलाकार प्रवत कुमार स्वाइन की ओडिसी नृत्य की रही। उन्होंने सबसे पहले राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध “रास विचित्र” प्रस्तुत की। इसमें नौ रसों को विस्तार से और आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया गया। इन नौ रसों को व्यक्त करने के लिए शिव जी द्वारा गणेश जी का शीश काटे जाने वाली कथा को दिखाया। इसके बाद उन्होंने “सदा रिपु” को प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने दिखाया कि मानव जीवन के छह आंतरिक शत्रु हैं “काम”, “क्रोध”, “लव”, “मद”, “मोह” और “मश्चर्यम्”। चूँकि मन ही मनुष्य में बंधन और मुक्ति का कारण है, इसलिए यह समझना और महसूस करना आवश्यक है कि जब हम अपने आस-पास की वस्तुओं से अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं, तो यह बंधन का कारण बनता है और यदि हम किसी भी तरह के जुनून से खुद को अलग करके खुद को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं, तो यह मुक्ति की ओर ले जाता है। यह मुक्ति तब मिलती है जब कोई छह “दोषों” (आंतरिक शत्रुओं) या सदा रिपु पर विजय प्राप्त करने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम होता है।

अंतिम प्रस्तुति भी कथक के नाम रही। जिसे प्रस्तुत किया संगीत नाटक अकादमी अवॉर्डी सुश्री अदिति मंगलदास, दिल्ली ने। उन्होंने अपनी प्रस्तुति “समवेत” में पंचतत्वों के संगम पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश को दिखाया, जो सामंजस्य में एकजुट होकर शरीर, मन और आत्मा को जागृत करके संपूर्णता को प्राप्त कर एक आदर्श संतुलन स्थापित करते हैं। इस प्रस्तुति में कथक की भाषा और ध्वनि को बहुत ही सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया गया।

भीतर का आंदोलन आनंद का स्वरूप लिए बाहर आता है : प्रो.मीनाक्षी जोशी

कलाविदों और कलाकारों के मध्य संवाद का लोकप्रिय सत्र “कलावार्ता” का तीसरा दिन “भारतीय नृत्य कला दर्शन में निहित दर्शन” के नाम रहा। इस विषय पर व्याख्यान दे रही थीं प्रयागराज से पधारीं प्रो.मीनाक्षी जोशी। उन्होंने अपनी बात के प्रारम्भ में कहा कि हर नृत्य शैली में ले होती है। लय को अनुभव करते हुए ही नृत्य किया जाता है। जब एक ही लय पर बहुत समय तक नर्तक नृत्य करता और दर्शक देखता रहता है तब दोनों के भीतर आंदोलन होता है और यही आंदोलन आनंद के स्वरूप में बाहर आता है। आगे उन्होंने बताया कि जब हमें ऊपर की ओर जाना होता है तो सीधा घूमते हैं और नीचे की ओर जाना होता है तो उल्टा घूमते हैं। नृत्य में भी सीधा घूमा जाता है। यह स्पंदन उर्ध्व की ओर ले जाता है। तब दर्शक और कलाकार एकाकार को प्राप्त करते हैं। उनके व्याख्यान के बाद विद्यार्थियों और कलाप्रेमियों ने उनसे कुछ प्रश्न भी किए।

प्रणाम में पधारीं पद्मविभूषण डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम, कहा — भारतीय संस्कृति का होना ही श्रेष्ठ है

51वें खजुराहो नृत्य समारोह का चौथा दिन बहुत खास रहा। पहली बार आयोजित की जा रही प्रणाम प्रदर्शनी/व्याख्यान सह संवाद जिस महान नृत्यांगना के जीवन और कला अवदान पर केंद्रित है वे नृत्य के विद्यार्थियों से रूबरू हो रही थीं। वरिष्ठ नृत्यांगना एवं पद्मविभूषण डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम, नृत्य संसार का एक ऐसा नाम है जिन्हें किसी पहचान की आवश्यकता नहीं। प्रणाम का पहला व्याख्यान सह संवाद रविवार को आयोजित किया गया। डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम ने संवाद करते हुए कहा कि मैं मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की आभारी हूं कि मेरे जीवन और कला अवदान पर केंद्रित गतिविधि का आयोजन खजुराहो नृत्य समारोह जैसे श्रेष्ठ समारोह में किया। यह न सिर्फ किसी व्यक्ति बल्कि कला, परम्परा और कलाकार का सम्मान है। आज के जमाने में हमारी उम्र के लोग जब पाश्चात्य संस्कृति की ओर देखते हैं तो भारतीय संस्कृति का होना ही सबसे श्रेष्ठ मालूम होता है। हमारी नाट्य कला इतनी विस्तृत और समृद्ध है कि हम उन्हें भी दे सकते हैं, हमें उनसे कुछ लेने की आवश्यकता नहीं है। हमारे नाट्य का आधार हमारी परंपराएं हैं। ये केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का माध्यम हैं। नाट्य के लिए ज्ञान और प्रज्ञता जरूरी है। प्रज्ञता कौशल प्रदान करता है, लेकिन अभ्यास जरूरी है। भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र रचा, यही कितनी अद्भुत बात है कि किसी मुनि ने नाट्य शास्त्र रचा। क्योंकि नाट्य का सम्बन्ध धर्म से है और धर्म को जाने बगैर नाट्य नहीं लिखा जा सकता। कला भी धर्म के लिए ही है। इसके बाद सुश्री जयश्री राजगोपालन और सुश्री अनुराधा विक्रांत ने डॉ.पद्मा सुब्रह्मण्यम की नृत्य संरचनाओं के विविध पक्षों पर व्याख्यान दिया।

अभिनय का सौंदर्य और शुद्ध कथक का प्रदर्शन

खजुराहो बाल नृत्य महोत्सव का चौथा दिन ओडिसी और कथक नृत्य प्रस्तुतियों के नाम रहा। अपने गुरु की तालीम और साधना को बाल नृत्य कलाकार मंच पर जिस तरह साकार कर रहे हैं, उन्हें देख यह प्रतीत हो रहा है कि भारतीय संस्कृति की इस स्वर्णिम यात्रा में कई अनेक आभूषण भविष्य में जड़े जायेंगे। चौथी शाम की पहली प्रस्तुति ओडिसी की थी, जिसे प्रस्तुत कर रही थीं स्नेहा मिश्रा। स्नेहा ने अपने नृत्य की शुरुआत नवदुर्गा से की। अभिनय अंग के सौंदर्य को उन्होंने अपने नृत्य में बखूबी दिखाया। इसके बाद नोजा यमुना प्रस्तुत कर प्रस्तुति को विराम दिया। इसके बाद अगली प्रस्तुति कथक की थी। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुश्री सुचित्रा हरमलकर की शिष्या विधि गाजरे ने अपनी गुरु परम्परा को नृत्य के माध्यम से दर्शाया। उन्होंने शुद्ध कथक के साथ अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की, जिसमें आमद, थाट, परने, प्रमिलु, रायगढ़ घराने की परंपरा की रचनाएं और चक्कर। अंत में उन्होंने झूला गीत से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।

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मेरा नाम रिक्की सिंह हैं. छतरपुर जिले में दैनिक भास्कर में वर्ष 2014 से 2016 तक सर्कुलेशन हेड के पद पर सेवाएँ देने के बाद दैनिक दबंग मीडिया ग्रुप के साथ 2017 तक सेवाएँ देने के बाद वर्तमान में एमपी न्यूज़ टीवी में कार्यरत हूँ.डिजिटल मीडिया के इस युग में आप सब तक Khabarilal.net के माध्यम से खबरें पहुंचा रहा हूँ
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