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Holi 2023 : आदिमानव की तरह चकमक पत्थर से आग लगा आज भी यहाँ होली जलाने की हैं परंपरा

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Holi 2023 : आग की उत्पति के बारे में इतिहासकार बताते हैं की आग का आविष्कार पुरा पाषाण काल में 25 लाख वर्ष हुआ था. आदि मानव पत्थरों को एक जगह से कही दूसरी जगह ले जा रहे थे तभी दो पत्थरों में आपस में घर्षण हुआ होगा और इससे निकली चिंगारी देख आदि मानव को हैरानी हुई होगी और इस घटना को उन्होंने दो पत्थरों को आपस में रगड़ कर चमकदार रोशनी को देखना चाहा होगा. शुरुवाती दौर में तो आदिमानव आग से डरता था लेकिन धीरे धीरे आग के उपयोग को आदिमानव सीखता गया और समय दर समय आग जलाने के संसाधनों का भी अविष्कार होता गया.

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लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के देपालपुर में आज भी होली की आग के लिए आग की खोज के सबसे पहले तरीके से यानी 25 लाख साल पुराने तरीके से दो पत्थरों को आपस में टकराकर आग लगाईं जाती है. आपको बता दें की देपालपुर नगर के धाकड़ सेरी मोहल्ले में माचिस से नही चकमक पत्थर से आदिमानव काल की तरह ही आग उतपन्न कर बाती जलाकर घास में आग जलाकर कंडो से सजी होलिका का दहन होता है। इस कार्य को नगर पटेल रामकिशन धाकड़ अंजाम देते है, रामकिशन पटेल बताते हैं इस तरह चकमक पत्थर से आग लगाकर होली जलाने की परंपरा पीढ़ी दर पीड़ी अनादिकाल से चली आ रही है.  

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होलिका दहन की अलसुबह शुभ मुहर्त में होलिका दहन होगा व शाम 3 बजे के बाद नगर के ठाकुर मोहल्ले की टोली आती है व नगर पटेल को आमंत्रित कर मैदान पर ढोल बजाकर व निशान लेकर ले जाते है और 6 फिट लंबी चुल में धधकते अंगारों के बीच नगर के पटेल  सबसे पहले चुल की पूजा कर स्वयं धधकते अंगारों पर से निकलकर गल बाबा की पूजा करते है फिर अंगारों पर से निकलते है मनन्तधारी।इसी के साथ एक दिवसीय मेले का शुभारंभ होता है।

अनादिकाल से चली आ रही इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए देश प्रदेश के कई हिस्सों से लोग इंदौर जिले के देपालपुर पहुँचते हैं और होली में आग लगाने की इस पुरातन विधि को देखते हैं.

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Artical by Aditya
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