International women’s day 2023 : अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर खबरीलालडॉटनेट आपको जबलपुर की एक ऐसी युवती से रूबरू कराने जा रहा है जिसने बचपन में भी बचपन का अहसास नहीं किया. जब उसकी हमउम्र के बच्चों मिट्टी का घर और खिलौने बनाकर दिल बहलाते थे, तब यह मासूम पिता गुलाम शब्बीर के साथ दुकान में औज़ारों से खेलती थी. कहते हैं कि जब इंसान खुद से कुछ सीखने की ठान ले, तब हर काम उसके लिए आसान हो जाता है. काम का जुनून व कुछ अलग हटकर सीखने की ललक, दिन रात कड़ी मेहनत और काबलियत ने जिस लड़की को भारत की प्रथम महिला टेक्नीशियन बना दिया, उस होनहार का नाम है- कुमारी यासमीन बानो मिर्जा़.
जबलपुर के सैन्य क्षेत्र सदर की गली नम्बर सात में रहने वाली यासमीन ने सिर्फ सात साल की उम्र में पिता के साथ उनके वर्कशाप में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. उम्र बढ़ने के साथ यासमीन का हुनर भी निखरता गया. आलम यह हुआ कि जो काम पिता ने नहीं किया उस काम की चुनौती भी इस लड़की ने स्वीकार की और अपनी प्रतिभा से लोगों को हैरान करने लगी.
सन 2000 में पिता का साया उठ गया लेकिन इस बहादुर युवती ने हिम्मत नहीं हारी. अकेले वर्कशाप को सम्हालते हुए दुनिया को यह पैग़ाम दिया- मुस्लिम लड़कियाँ भी हुनरबाज़ बन सकती हैं.और मेहनत, लगन, काम का जुनून व काबलियत की दम पर खुद की अलग पहचान बनायी जा सकती है.
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मर्दो के क्षेत्र में घुसपैठ बनाकर अच्छे अच्छे टेक्नीशियन को हैरान कर देने वाली कु. यासमीन जिस वक्त मोटर बाइंडिंग करती थी, तब हर देखने वाला शख्स “वन्डरफुल” कहने मजबूर हो जाता है. यासमीन हर उस काम में माहिर है जो कभी मुद्दों की बपौती कहलाते थे. जिस काम को करने हर तकनीशियन मना कर देते, उसे करने में इस लड़की को मज़ा आता है. वह कहती है- ” जब लोग निराश हो जाते हैं, मुम्बई, दिल्ली से भी मायूसी हाथ लगती है, तब उस चुनौती को स्वीकार करना मेरी आदत बन चुकी है.”
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वैसे तो यासमीन के हुनर व काम करने का दायरा बहुत बड़ा है लेकिन फिर भी आपको यह बताना मुनासिब है कि यासमीन को जिन उपकरणों को बनाने विशेज्ञ माना जाता है वह हैं– मोटर बाइंडिंग, वाटर पम्प, एक्जास्ट फ़ेन, सीलिंग फ़ेन, टेबिल एण्ड वाल फ़ेन, वाशिंग मशीन, फूड प्रोसेसर, मिक्सर ग्राइंडर, कूलर एण्ड पम्प, हीट कंवेक्टर, गीज़र ओटीजी ओवन टोस्टर, आटो आयरन, कुकर, मिक्सी, गैस स्टोव आदि.
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बचपन में ही बच्चों के खेल से दूर रहने वाली यासमीन ने तकनीशियन की दुनिया में व्यस्तता के बावजूद पढ़ाई जारी रखी और कला में ग्रेज्युएशन किया. इस बात में दो राय नहीं कि देश की प्रथम महिला तकनीशियन यासमीन ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए कड़ा और थका देने वाला लम्बा संघर्ष किया है. दस साल पहले मां भी दुनिया छोड़कर चली गयीं, लेकिन अब भी यासमीन के हौसले बुलंद हैं. उसे उम्मीद है कि एक ना एक दिन उसके हुनर की कद्र की जाएगी, मेहनत और काबलियत का मूल्यांकन होगा और तन्हा ज़िंदगी में खुशियों
का रंग भरेगा.
Artical by तालिब हुसैन
लेखक प्रेस क्लब आफ वर्किंग जर्नलिस्टस जबलपुर के अध्यक्ष हैं