वाइल्ड लाइफ

मोर मोरनी की सुंदरता देख बाघ हुआ मंत्रमुग्ध भूला शिकार करना

आमतौर पर टाईगर का मूड बड़ा अग्रेसिव रहता है वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट बताते है कि बाघ और शेर में यही फर्क होता है कि बाघ का पेट जब भरा होता है तो वह शिकार कि तरफ देखता तक नही है लेकिन बाघ का स्वभाव इसके उलट होता है। बाघ के सामने अगर कोई भी वन्यजीव आ जाए बाघ बिना अटैक किए नही रख सकता लेकिन बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व (Bandhavgarh Tiger Reserve) से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसे देख आप भी कहेगे की बाघ तुम शिकार करना भूल गए क्या

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बाघ और मोरो का जोड़ा दिखा एक साथ

दरअसल यह समय मोर के प्रणयकाल का होता है मोर मोरनी के सामने अपने विशाल पंखों को फैला कर मोरनी को आकर्षित करता है मोरनी को जब लगता है कि यह नर मोर बाकि मोरों की अपेक्षा ज्यादा सुंदर और ताकतवर है तब जाकर वह उसका  प्रणय निवेदन स्वीकार करती है। लेकिन जब मोर अपने पंखों को फैला कर अपनी सुंदरता का प्रदर्शन करता है तब मोरनी एक जज की भांति बड़े गौर से उसे देखती है। और आपने भी वीडियो और फ़ोटो देखा में ही मोर के प्रदर्शन को देखकर टकटकी लगाकर देखते हैं।

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दो राष्ट्रीय धरोहर एक साथ

लेकिन बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व (Bandhavgarh Tiger Reserve) के मगधी कोर ज़ोन (Magdhi Core Zone )में एक बड़ा ही अजीबोगरीब नजरा देखने को मिला है दरअसल मोर एक मोरनी के सामने अपने पंखों का प्रदर्शन कर ही रहा था तभी पीछे से बाघ आकर खड़ा हो गया।अमूमन बाघ किसी वन्यजीव को देखकर अटैक कर देता है लेकिन मोर की सुंदरता देख बाघ भी मंत्रमुग्ध हो गया और शिकार करना भूल एकटक मोर की ओर निहारने लगा। सोशल मीडिया में फ़ोटो देखते ही यूजर्स ने कॉमेंट्स करना शुरू कर दिया कि दो-दो राष्ट्रीय धरोहर एक साथ है बड़ा ही अदभुत नजारा है।दरअसल बाघ हमारे देश का राष्ट्रीय पशु है वही मोर भी हमारे भारत देश का राष्ट्रीय पक्षी है।

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बाघ कब बना राष्ट्रीय पशु :

राष्ट्रीय प्रतीक भारत की पहचान और आधार हैं। सभी प्रतीकों का अपना अलग महत्व भी है। देश की गरिमा को दर्शाने के लिए जैसे प्रतीकों की श्रेणी में राष्ट्रीय फूल, गीत व पक्षी आते हैं; ठीक उसी प्रकार राष्ट्रीय प्रतीक की इस श्रेणी में राष्ट्रीय पशु ‘बाघ’ भी आता है। बता दें कि साल 1973 में टाइगर यानी बाघ को राष्ट्रीय पशु चुना गया था।बाघ का वैज्ञानिक नाम ‘पैंथेरा टिगरिस’ है।

जैसा कि आप जानते हैं हर एक राष्ट्रीय प्रतीक उस देश की गरिमा से जुड़ा होता है और राष्ट्रीय प्रतीक चुनने के कई कारण होते हैं। ठीक उसी प्रकार बाघ को देश का राष्ट्रीय पशु के रूप में चुने जाने के कई कारण थे। जिसमें से सबसे अहम और मुख्य कारण बाघ का फुर्तीलापन, शक्तिशाली और दृढ़ता का होना है और इन्हीं सभी कारणों से बाघ यानी टाईगर को वर्ष 1973 में राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया था।लेकिन यह जानकर आपको जरूर हैरानी होगी कि बाघ से पहले भारत का राष्ट्रीय पशु शेर था। आपको बता दें कि साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया था। लेकिन साल 1973 में राष्ट्रीय पशु का दर्जा शेर को हटा कर बाघ को राष्ट्रीय पशु बाघ को बना दिया गया।इसके पीछे का अहम कारण था देश मे बाघों की लगातार घटती संख्या वर्ष 1973 में जब प्रोजेक्ट टाईगर की शुरुआत की गई थी तब देश मे इतने टाईगर थे जिन्हें आप अपनी अंगुलियों में गिन सकते थे इसी कारण बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा देकर बाघों का संरक्षण और संवर्धन किया गया उसका परिणाम यह है कि आज देश मे बाघों की संख्या 3167 पहुँच गई है।

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मोर कब बना राष्ट्रीय पक्षी

मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। भारत के पड़ोसी देश म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है। अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं।

मोर को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी चुने जाने के पीछे सिर्फ उसकी खूबसूरती ही एक कारण नहीं बल्कि और भी कई वजहें हैं जिनके चलते यह इस मुकाम पर है। जब देश के राष्‍ट्रीय पक्षी का चयन किया जा रहा था तो मोर के अलावा कई पक्षियों के नाम भी इसमें शामिल थे लेकिन चुना सिर्फ इसे ही गया।भारतीय वन्‍य प्राणी बोर्ड की बैठक में जब राष्ट्रीय पक्षी चुनने की बारी आई तो मोर के अलावा इस बैठक में सारस क्रैन, ब्राह्मि‍णी काइट, बस्‍टार्ड, और हंस के नामों पर भी चर्चा हुई थी। दरअसल राष्ट्रीय पक्षी के लिए जो गाइडलाइन्‍स बनाई गई थीं उनके अनुसार राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित किए जाने के लिए उस पक्षी का देश के सभी हिस्‍सों में मौजूदगी भी होना अनिवार्य थी साथ ही आम आदमी इसे पहचान सके साथ ही इसे किसी भी सरकारी पब्लिकेशन में डेपिक्‍ट किया जा सके। इसके अलावा यह पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा और इतिहास का हिस्सा होना चाहिए। इसके बाद मोर को 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है।

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Article By : Aditya Vishwakarma

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Sanjay Vishwakarma

संजय विश्वकर्मा (Sanjay Vishwakarma) 41 वर्ष के हैं। वर्तमान में देश के जाने माने मीडिया संस्थान में सेवा दे रहे हैं। उनसे servicesinsight@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। वह वाइल्ड लाइफ,बिजनेस और पॉलिटिकल में लम्बे दशकों का अनुभव रखते हैं। वह उमरिया, मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने Dr. C.V. Raman University जर्नलिज्म और मास कम्यूनिकेशन में BJMC की डिग्री ली है।

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