देश भर में दशहरे के दिन लंकापति रावण का दहन किया जाता है और रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, लेकिन भारत देश के कई हिस्सों में आज भी रावण की पूजा होती है। सतना जिले के कोठी कस्बे में थाना परिसर के अंदर रावण की प्रतिमा स्थापित है और हर साल दशहरा के अवसर पर ग्रामीण रावण की पूजा करते हैं। कोठी के रहने वाले मिश्रा परिवार पिछले 45 सालों से लंकापति रावण की पूजा करते चले आ रहे हैं।
दहन की जगह लगते है जय जयकार ने नारे
भारत को अद्भुत परंपराओं और संस्कृति से भरा देश माना जाता है। जहां पूरे देश में दशहरा को धूमधाम से मनाया जाता है, बुराई पर सच्चाई की जीत स्वरूप रावण का पुतला दहन किया जाता है, तो दूसरी ओर सतना जिले के कोठी में रावण का दहन करने के बजाय उसकी जय जयकार करते हैं और पूजा करते हैं।
वंसज मानकर होती है पूजा अर्चना
इतना ही नहीं ये लोग रावण को अपना रिश्तेदार मानते हैं। पुराणों में किए गए उल्लेख के अनुसार रावण महाज्ञानी और पंडित था, जिसकी वजह से कई जगहों पर रावण को पूजा जाता है। रमेश मिश्रा बताते हैं कि वह सभी उनके दशानन के वंशज हैं, इसलिए वह रावण की पूजा अर्चना करते चले आ रहे हैं।
रावन को था वेद पुराणों का ज्ञान
इसके अलावा भी गांव के काफी लोग रावण की इस पूजा में शामिल होते हैं, रावण सबसे ज्ञानी थे, जिन्होंने ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था, जिसे वेद पुराण का ज्ञान था, उन्हीं के लिए भगवान राम की लीला रची गई और रावण का अंत किया गया।
दशानन की तीन सौ वर्ष पुरानी प्रतिमा
रावण में अहंकार भले ही था, लेकिन उनकी भक्ति, तप और ज्ञान पूजने लायक है। रमेश मिश्रा का कहना है थाना परिसर के अंदर वर्षों पुरानी रावण की प्रतिमा की वह लगातार दशहरे के दिन बड़े धूमधाम से पूजा करते चले आ रहे हैं, उनके के बाद उनके वंशज इस परंपरा को निभाएंगे।
निर्माण के दौरन मिली थी प्रतिमा
पुजारी रमेश मिश्रा बताते हैं कि 15 वर्ष पहले जब नए थाना भवन का निर्माण होना था तब उन्हें रात में स्वप्न आया कि कोई प्रतिमा तोड़ रहा है। सुबह वे पहुंचे तो जेसीबी लगी थी। जेसीबी ऑपरेटर ने रावण की प्रतिमा पर प्रहार किया तो वहां एक सांप निकल आया। ऑपरेटर काम छोड़ कर हट गया, मजदूरों में भी भगदड़ मच गई। बाद में थाना भवन का निर्माण स्थल परिवर्तित किया गया।