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Maha Shivratri 2023 : महा शिवरात्रि पर एक दिन की पैरोल मिलती हैं भोलेनाथ को 49 साल से हैं सलाखों के पीछे

Maha Shivratri 2023 : रायसेन में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी महाशिवरात्रि के पावन पर्व को मनाने के लिए शिव भक्तों के मन में भारी उमंग देखने को मिल रही है रायसेन दुर्ग पहाड़ी पर स्थित प्राचीन सोमेश्वर ...

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Sanjay Vishwakarma

Maha Shivratri 2023 : रायसेन में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी महाशिवरात्रि के पावन पर्व को मनाने के लिए शिव भक्तों के मन में भारी उमंग देखने को मिल रही है रायसेन दुर्ग पहाड़ी पर स्थित प्राचीन सोमेश्वर धाम मंदिर को साजो सज्जा के साथ फूलों से सजाया गया है यहां हर शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और पवित्र जल दूध बेलपत्र अर्पण कर भगवान शिव का पूजन अर्चन करते है दुर्ग पहाड़ी पर स्थित सोमेश्वर धाम को शिवरात्रि के दिन ही खोला जाता है जिसके बाद  इस मंदिर में पुरातत्व विभाग की ओर से ताला लगा दिया जाता है लोगों की लंबे समय से मांग है कि भगवान भोलेनाथ को सलाखों से मुक्त कराया जाए जिससे की नित्य उनका पूजन अर्चन कर भक्तों को उनके दर्शन प्राप्त हो सके

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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 44 किलोमीटर की दूरी पर बसे हुए रायसेन की दुर्ग पहाड़ियों पर  सोमेश्वर धाम लंबे समय से चर्चाओं का विषय बना हुए है शिव भक्तों की लंबे समय से मांग रही है कि बिना किसी जुर्म के उनके आराध्य भगवान शिव को आजादी के बाद से ही लोहे की सलाखों में कैद कर रखा गया है जिससे उनके मन में पिड़ा है 1974 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी ने 1 दिन के लिए शिवरात्रि के दिन मंदिर का ताला खोलने की परंपरा प्रारंभ की थी तब से ही महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस दुर्ग पहाड़ी पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है भगवान शिव के भक्त और कावड़िए दूरदराज के इलाकों से पवित्र जल  लेकर भगवान शिव को अर्पण करने के लिए पहुंचे हैं.

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11वीं शताब्दी में बनाए गए रायसेन किले पर भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था जहां पर तत्कालीन राजा की रानियां और नागरिक  भगवान शिव का दर्शन कर पूजा अर्चना करते थे मंदिर के तहखाने में 32 खंभे हैं जिन पर यह शिव मंदिर आज भी टिका हुआ है इस मंदिर की पूर्व दिशा से उदित होने वाले सूर्य के प्रकाश की किरण  जैसे ही इस मंदिर पर पड़ती हैं तो यह मंदिर स्वर्ण महल की तरह सुशोभित होने लगता है इस मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित किए गए हैं 1543 में रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने युद्ध में छलपूर्वक हरा दिया था इसके बाद शेरशाह ने मंदिर के शिवलिंग हटाकर इसे मस्जिद घोषित कर दिया था लेकिन मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर भगवान गणेश की मूर्ति सहित अन्य हिंदू मान्यताओं के चिन्ह स्थापित रहे जिससे यह हमेशा साबित होता रहा कि है एक मंदिर है देश आजाद हुआ तो प्रशासन ने सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए मंदिर के पट बंद कर दो ताले लगा दिए मंदिर के पास शिवलिंग लावारिस अवस्था में पड़ा था.

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यह सब देख हिंदुओं के मन में कहीं ना कहीं पीढ़ा बरकरार रही है, जिसके चलते 1974 में कृष्ण गोपाल महेश्वरी की अध्यक्षता में रायसेन दुर्गमंदिर खोलो समिति का गठन किया गया लंबे समय से हिंदुओं की मांगों को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी  इंदिरा गांधी के खास लोगों की सूची में शुमार थे रायसेन दूर मंदिर संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल रायसेन के तत्कालीन कलेक्टर एसके अग्रवाल से मिला और उनसे जन भावनाओं को शासन तक पहुंचाने का निवेदन करने का ज्ञापन सौंपा शहर में अब तक कई आंदोलन हो चुके हैं लोगों की मांगों को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने 1 दिन महाशिवरात्रि के दिन मंदिर का पट खोलने का आदेश जारी किया तब से ही महज़ 1 दिन के लिए शिवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंदिर को शिव भक्तों के लिए खोला जाता है

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महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मंदिर को खोले जाने के सम्बंध में जब हमारी चर्चा शिवभक्तों से हुई तो उन्होंने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए बताया कि भोलेनाथ को बिना किसी जुर्म के  लोहे की सलाखों में कैद किया गया है पूरा देश आजादी के बाद आजाद हो गया था पर हमारे भोले को देश आजाद होने के बाद से ही कैद में रखा गया है जिस की पीड़ा हमेशा हमारे मन में रहती है हम तब तक मांग करते रहेंगे  जब तक कि हमारे आराध्य को लोहे की सलाखों से मुक्त कर दिया जाता हैं।

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