जयराम शुक्ला / लोक कथाओं और किंवदंतियों में है कि एकबार माता पार्वती गणेश जी की मिठाईखोरी से बहुत परेशान हो गईं, मना करने के वाबजूद भी गणेश जी थे कि लड्डू, पेड़ा, रबड़ी, दूध मलाई, केला जैसे मिष्ठान्न व फल छककर खाते। इस प्रवृत्ति के चलते उनके स्वास्थ्य में उल्टा असर शुरू हुआ। देवों के बैद्य अश्वनी कुमारों को इलाज हेतु बुलाया गया। अश्वनी कुमारों ने जांच करके बताया कि इनके रक्त में शर्करा उच्चस्तर पर है। मामला और भी गंभीर हो सकता है यदि गणपति ने मिठाई खाना बंद नहीं किया।
घबराई पार्वती शंकर जी के पास गईंऔर बोलीं- गणेश की मिठाईखोरी की कोई काट ढूंढिए प्रभू, लड़का हाथ से ही निकला जा रहा है।
क्षणभर ठहर कर शिव शंभू ने विचार किया और सृष्टि का आह्वान करते हुए दो वृक्ष पैदा किए.. एक कपित्थ(कैथा) दूसरा जंबू(जामुन)! यानी ठंड के छह महीनों के लिए कैथा और गर्मी के दिनों के लिए जामुन।
शंकरजी पार्वती से बोले- गौरी अब तुम्हारे लाल के स्वास्थ्य का पूरा प्रबंध कर दिया है। कितनी भी मिठाई, मोदक, लड्डू,पेड़ा खाएं बस अंत में एक कैथा जरूर खाए। रक्त शर्करा अपने स्तर पर ही रहेगी। गर्मी के दिनों में भरपेट जामुन का इंतजाम कर दिया है। दोनों अश्वनी कुमार इस नई औषधि के बारे में विस्तार से जानकारी ली और शंकर-पार्वती का नमन्/आराधन करते हुए ब्रह्मलोक चले गए। उधर प्रसन्नचित्त गणेश जी फिर शेष मोदकों, लड्डू -पेंड़ों को ठिकाने लगाने लगे..
गणेश जी की अर्चना में एक प्रसिद्ध श्लोक आता हैं-
गजाननम् भूत गणाधि सेवितम्
कपित्थ, जम्बू फल चारु भक्षणम्
उमा सुतम् शोक विनाश कारकम्
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
इस श्लोक में कपित्थ भी है और जामुन भी है जिसे गणेश जी बड़े चाव से खाते हैं।
सो अपन भी कैथा और जामुन के महात्म्य को समझ लिया। इस सीजन में प्रतिदिन कैथा की चटनी, मुरब्बा, अचार खाते हैं। जामुन के आने तक के लिए कैथीय औषधि का पर्याप्त इंतजाम कर लिया है।
नोट- लेकिन डर तो डर है और डायबिटीज तो सभी रोगों की मौसी है। सो आप वही करें जो आपका बैद-डाक्टर और आत्मा आदेश दे। मेरे झांसे में न फंसें।