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बोमा कैप्चरिंग तकनीकी से बांधवगढ़ का 41 सालों का अधूरा प्रोजक्ट होगा पूरा

विश्वप्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व का नाम जैसे ही जेहन में आता है वैसे ही बाघों की तस्वीर अवचेतन मन में अंकित हो जाती हैं और हो भी क्यों पूरे विश्व में बांधवगढ़ मतलब बाघ और बाघ मतलब बांधवगढ़ कहना अतिशयोक्ति नही होगी अपनी अधिक बाघों की संख्या के कारण मध्यप्रदेश टाईगर स्टेट कहलता हैं,प्रदेश टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में बांधवगढ़ की एक अहम् भूमिका है.

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लेकिन एक बार पुनः बांधवगढ़ सुर्ख़ियों में हैं लेकिन इस बार का विषय बांधवगढ़ के बाघ नही वल्कि बांधवगढ़ में वर्षों वर्षों बाद प्रोजेक्ट बारहसिंगा के रूप में बारहसिंगा की घर वापसी चर्चा का विषय बनी हुई हैं, आज इस खबर में आपको प्रोजक्ट बारहसिंगा से जुडी हर एक हो बात पता चल जाएगी जो आपके जेहन में आ रही है.

क्यों पड़ा बारहसिंगा नाम

दरअसल बारहसिंगा हिरण की एक प्रजाति है हिरन की सींग को श्रृंग कहते हैं,वयस्क बारहसिंगा के बड़े बड़े श्रृंग सामान्यत बारह शाखाओं में विभाजित होते है इसलिए इन्हें बारहसिंगा कहते हैं,बारहसिंगा 3 से 4 वर्ष में प्रजनन करने योग्य हो जाते हैं, बारहसिंगा भी मादा बारहसिंगा से सम्बन्ध बनाने के लिए बाघों की तरह ही आपस में नर बारहसिंगा आपस में संघर्ष कर लेते है.जिस श्रेणी के बारहसिंगा बांधवगढ़ में लाए जा रहे है,प्रजनन के लिए दिसंबर माह के आसपास संसर्ग करते है. 20 से 30 वर्ष की आयु तक जीवित रहने वाले बारहसिंगा औसतन 48 किलोमीटर घंटे की गति से दौड़ लगा सकते हैं.

क्या हैं प्रोजेक्ट बारहसिंगा

मध्यप्रदेश ने जैसे बाघों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करके पूरे पूरे विश्वभर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया हैं वैसे ही प्रदेश सरकार की प्रोजेक्ट बारहसिंगा की एक महत्वपूर्ण योजना है. आज कान्हा से बारहसिंगा बांधवगढ़ लाए जाने योजना को मूर्त रूप दिया जा चुका हैं सिर्फ सिफ्टिंग बाकी है लेकिन एक ऐसा समय भी था जब पूरे विश्व में सिर्फ कान्हा राष्ट्रिय उद्यान में बारहसिंगा की यह प्रजाति विलुप्ति के कागार पर थी. एक आकडे के मुताबिक वर्ष वर्ष 1966 में कान्हा राष्ट्रिय उद्यान में सिर्फ 66 की संख्या में बारहसिंगा बचे थे लेकिन प्रोजक्ट बारहसिंगा के तहत बेहतरीन संरक्षण और संवर्धन की बदौलत आज कान्हा राष्ट्रिय उद्यान में 1000 से ज्यादा बारहसिंगा मौजूद है.

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सिर्फ कान्हा में पाई जाती हैं बारहसिंगा की यह प्रजाति

प्रोजक्ट बारहसिंगा के तहत बारहसिंगा की जिस प्रजाति को बांधवगढ़ लाया जा रहा है,दरअसल यह प्रजाति पूरे विश्वभर में सिर्फ कान्हा नेशनल पार्क में ही पाई जाती है,आपको बता दें की वैसे तो पूरे भारत में बारहसिंगा की सिर्फ तीन प्रजाति पाई जाती है.जिनके वैज्ञानिक नाम हैं रुसेवर्स डूर्वासेली,रुसेवर्स डूर्वासेली ब्रेंडरी और रुसेवर्स डूर्वासेली रंजितसिंही इन सभी को स्थानीय नाम बारहसिंगा के नाम से देश में जाना जाता है. बारहसिंगा की इन तीन प्रजातियों में रुसेवर्स डूर्वासेली डूर्वासेली उत्तर भारत और तराई वाले क्षेत्रों में और रुसेवर्स डूर्वासेली रंजितसिंही असंम के ब्रह्मपुत्र नदी के मैदानी क्षेत्रों में पाए जाते हैं लेकिन बारहसिंगा की तीसरी प्रजाति यानी रुसेवर्स डूर्वासेली ब्रेंडरी यानी कठोर जमीन पर पाए जाएँ वाले बारहसिंगा खुले घास के मैदान में सिर्फ केवल सेन्ट्रल इंडिया में मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रिय उद्यान तक ही सीमित है.

 

बांधवगढ़ के पहले कहा कहा शिफ्ट गए बारहसिंगा

कान्हा राष्ट्रिय उद्यान से बारहसिंगा सिफ्टिंग का यह कोई पहला प्रयोगात्मक प्रोजेक्ट नही हैं इसके पहले भी वर्ष २०१६ में प्रयोग के तौर पर कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से सात बारहसिंघों को भोपाल के वनविहार में शिफ्ट किए गए थे.जिसमें सफलता मिलने के बाद कान्हा राष्ट्रिय उद्यानप्रबंधन ने भारत सरकार से करीब 29 बारहसिंगा को सतपुड़ा के बोरी अभ्यारण में शिफ्टिंग के लिए अनुमति ली थी और आज बोरी अभ्यारण भी कान्हा से बारहसिंगा से गुलजार है. और अब प्रोजक्ट बारहसिंगा के तहत बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में 100 बारहसिंगा शिफ्ट किए जाने के लिए भारत सरकार से अनुमित ली गई है.

कब और कितने बारहसिंगा आएँगे बांधवगढ़

जैसा की आप जानते ही हैं की बांधवगढ़ राष्ट्रिय उद्यान प्रबंधन ने भारत सरकार से 100 बारहसिंगा को बांधवगढ़ में लाए जाने की परिमिशन ले रखी है लेकिन पूरे के पूरे बारहसिंगा एक साथ नही लाए जाएंगे बल्कि इस प्रोजेक्ट् के तहत 3 वर्ष में 100 बारहसिंगा को बांधवगढ़ में बसाए जाने के लिए योजना बनाई गई हैं जिसमे वर्ष यानी 2023 में 50 बारहसिंगा लाए जाएंगे उसके बाद क्रमशः अगले दो वर्षों में 25-25 बारहसिंगा बांधवगढ़ नेशनल पार्क में लाए जाएँगे.

बांधवगढ़ के मगधी जोन में बना है 50 हक्टेयर में बाड़ा

बांधवगढ़ प्रबंधन ने बताया की बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व के धमोखर वन परिक्षेत्र अंतर्गत मगधी कोर जोन में 50 हैक्टेयर में बाड़ा बनाया गया है और भविष्य में इसे 100 हैक्टेयर तक बढाया जाएगा. कान्हा राष्ट्रिय उद्यान से लाए गए बारहसिंगा 3 वर्षों तक इस बड़े में रहेगें, इस बाड़े को ऐसा बनाया गया हैं की कोई भी मांसाहारी वन्यजीव इसमें प्रवेश न कर सके.3 वर्ष बाद जब बारहसिंगा जब स्थनीय वातवरण के अनुकूल हो जाएगें तब उन्हें स्वछंद रूप से विचरण करने के लिए बांधवगढ़ के खुले जंगल में छोड़ा जाएगा.

कब शुरू हुआ बांधवगढ़ में बारहसिंगा लाए जाने का प्रयास

वैसे तो बीते दो बर्षों में कान्हा से बांधवगढ़ बारहसिंगा लाए जाने के प्रयास में काफी तेजी से काम हुआ है लेकिन आपको बता दें की वर्ष 1982 में देश विदेश और मध्यप्रदेश के वाइल्ड एक्सपर्ट्स की टीम बांधवगढ़ नेशनल पार्क (Bandhavgarh National Park ) में सर्वे के दौरान पाई थी की बारहसिंगा के लिए बांधवगढ़ एक बेहतरीन हैबिटैट के रूप में हैं लेकिन तत्कालीन समय में संसाधनों और अन्य विषयों के कारण यह प्रोजेक्ट मूर्त रूप नही ले सका था और अब 41 वर्ष बाद जब कान्हा राष्ट्रिय उद्यान से बांधवगढ़ में स्थानान्तरण के बाद आए एसडीओ सुधीर मिश्रा ने फाइल खंगालना चालू किया तो यह पुरानी जानकरी निकल कर सामने आई. दरअसल बांधवगढ़ में पूर्व में बारहसिंगा थे की नही इसका तो कोई आधिकारिक रिकॉर्ड मौजद नही है लेकिन एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर प्रदेश में जहाँ जहाँ पूर्व में बारहसिंगा के पाए जाने की जानकरी मिल रही हैं वहां वहां मध्यप्रदेश सरकार बारहसिंगा को प्रोजक्ट बारहसिंगा (Project Barahsingha) के तहत पुनः बसाने की तैयारी में  हैं.

बोमा कैप्चरिंग तकनीकी से लाए जाएगे बारहसिंगा

प्रोजक्ट बारहसिंगा के तहत कान्हा से बांधवगढ़ लाए जा रहे बारहसिंगा जिस तकनीकी से लाए जाएगे वह भी काफी चर्चा में हैं आपको बता दें की बोमा कैप्चरिंग तकनीकी (boma capturing technique) अफ्रीका में काफी लोकप्रिय हैं इस तकनीकी में फनल जैसे बाड़ के माध्यम से वन्यजीवों का पीछा कर एक बड़े बाड़े में पहुचाया जाता हैं और इसे अपारदर्शी बनाने के लिए घास की चटाई और हरे रंग के जाल से ढका जाता है.और इस पूरे सिस्टम को एक बड़े वाहन में रखकर परिवहन किया जाता है.

बोमा कैप्चरिंग (boma capturing technique) की इस स्थानान्तरण तकनीकी को राष्ट्रिय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने अनुमोदित किया हुआ हैं इस तकनीकी में वन्यजीव को ना तो हैण्ड हैंडलिंग की जाती है और ना ही ट्रेंकुलाइज किया जाता है.वन्यजीव को सिर्फ कैप्चर कर एक जगह से दुसरे जगह शिफ्ट किया जाता है.

बारहसिंगा शिफ्टिंग का क्या हैं वैज्ञानिक महत्व

वैसे तो बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व (Bandhavgarh tiger Reserve ) की जैव विविधता अपने आप में विश्व विख्यात है लेकिन बांधवगढ़ में बारहसिंगा शिफ्ट किए जाने का प्रमुख कारण अंतः प्रजनन (Inbreeding) भी है. जब वन्य जीव की कोई भी स्पीसीज एक जगह ही बढती जाए और उनका प्रजनन उसकी फैमिली ट्री में होने से भविष्य में होने वाली किसी भी बड़ी एपेडामिक में पूरा का पूरा कुनबा खत्म होने की कगार में पहुँच जाता है. ऐसे में यदि इनकी शिफ्टिंग भिन्न भिन्न जिओग्रफिकल एरिया में होने से डिफरेंट जींस तैयार होते हैं और यदि कोई महामारी आती भी हैं तो एक साथ उस वन्यजीव के मरने की सम्भावना कम हो जाती है,अभी हाल ही में अपने पढ़ा होगा की दक्षिण अफ्रीका और गिर के जंगलों से एक खबर आई थी की काफी संख्या में शेर एक साथ ख़त्म हुए हैं यह इन ब्रीडिंग की ही समस्या है. तो अगर हम देखें तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बारहसिंगा की शिफ्टिंग काफी मायने रखती है.

Artical By : Sanjay Vishwakarma

TV Journalist

Sanjay Vishwakarma

संजय विश्वकर्मा (Sanjay Vishwakarma) 41 वर्ष के हैं। वर्तमान में देश के जाने माने मीडिया संस्थान में सेवा दे रहे हैं। उनसे servicesinsight@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। वह वाइल्ड लाइफ,बिजनेस और पॉलिटिकल में लम्बे दशकों का अनुभव रखते हैं। वह उमरिया, मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने Dr. C.V. Raman University जर्नलिज्म और मास कम्यूनिकेशन में BJMC की डिग्री ली है।

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