चम्पावत की आदमखोर बाघिन जिसने 400 से ज्यादा लोगो को उतारा था मौत के घाट
Story of Champawat Tigress in Hindi: सन् 1907 में गर्मी के दिनों की शुरुआत हो चुकी थी। उत्तराखंड के चंपावत की पहाड़ियां प्रकृति के रंगों और रहस्यों से जगमगा रही थीं। धूनाघाट के पास पाली गांव की महिलाएं जलाऊ लकड़ी लेने निकली थीं। गाँव के बाहर, जंगल के पास। तभी महिला की गर्दन पर पंजे का जोरदार वार हुआ। महिला के मुंह से सिर्फ एक दबी चीख निकल सकी, फिर वह जबड़े में दब गई। बाकी महिलाओं ने शोर शराबा कर दिया। गांव के 50 से ज्यादा लोग लाठी-डंडों के साथ जमा हो गए थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि वह आगे बढ़े।
यह आदमखोर का डर था, जिसे ‘द डेविल ऑफ चंपावत’ का नाम दिया गया था। इससे हवा की जगह घाटियों में मौत की चीखें गूंजने लगीं। मांस के बिखरे टुकड़ों के बीच, खूबसूरत रास्तों पर खून के धब्बे मिलने लगे, जो जंगल में खत्म हो जाते।
प्रतिदिन लोगों के गायब होने से ब्रिटिश सरकार संकट में थी। इस आदमखोर बाघ के शिकार के लिए गोरखा जवानों को अल्मोड़ा रेंज से भेजा गया था। सरकार ने इनाम की घोषणा की। शिकारी रखे गए थे। लेकिन, इंसानों को लाशों में बदलने का सिलसिला थमा नहीं।
स्थिति नियंत्रण से बाहर थी और कोई समाधान नहीं था। फिर नैनीताल के लेफ्टिनेंट ने जिम कॉर्बेट से संपर्क किया। आयरिश मूल के कॉर्बेट, नैनीताल में बड़े हुए। जंगलों से रिश्ता पुराना था और उसमें गूंजती आवाजों से दोस्ती। आदमखोर बाघों का शिकार करने के लिए मशहूर जिम कॉर्बेट अपनी मार्टिनी हेनरी राइफल से चंपावत के लिए रवाना हुए।
जिम कॉर्बेट ने अपनी किताब ‘कुमाऊँ के आदमखोर’ ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमायूं’ (Man-Eaters of Kumaon)में लिखा है कि जब वह पाली गाँव पहुँचे तो दिन में घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ बंद रहते थे। लोग ने खुद को घरों में कैद कर लिया था,इस गांव में aadamkhor बाघिन ने अपना आखिरी शिकार किया था। डर की वजह यह थी कि पाली में बाघ द्वारा मारी गई महिला 10वीं या 20वीं नहीं बल्कि 434वीं शिकार थी. यह किसी भी आपदा या हमले से बड़ी ‘हत्या’ थी।
नेपाल में करीब चार साल पहले इस आदमखोर का आतंक का सिलसिला शुरू हुआ था। वहां बाघिन ने करीब 200 लोगों को मार डाला। इसका सामना करने के लिए नेपाल की सेना को मैदान में उतरना पड़ा। लेकिन, उसका निशाना नरभक्षी के आतंक को भेद नहीं सका। हालांकि, नेपाली सेना द्वारा लगातार कांबिंग और पीछा करने का असर यह हुआ कि बाघिन नेपाल से चंपावत की ओर भाग निकली ।
चंपावत पहुंचने से पहले कॉर्बेट ने दो शर्तें रखीं. एक तो बाघिन को मारने का इनाम हटा देना चाहिए और दूसरी शर्त यह है कि शिकारियों को इस टास्क से दूर रखा जाए।
कॉर्बेट ने इन शर्तों का कारण भी बताया। उन्होंने कहा कि काम खतरनाक था और इनाम के लालच में जल्दबाजी खतरे को और बढ़ाएगी। इसलिए इसे ठंडे दिमाग से चलाना जरूरी है। पाली गाव में, कॉर्बेट को पता चलता है कि बाघ ने पांच दिन पहले शिकार किया था और उसके बाद से लोगों ने बाहर जाना बंद कर दिया है।
शिकार की जगह और बाघिन के आने का रास्ता पूछकर कार्बेट ने सड़क के पास एक पेड़ पर अपना ठिकाना बनाया। चांदनी रात थी। पूरी उम्मीद थी कि शिकार साफ़ दिख जाएगा। गांवों में घरों के दरवाजे पहले की तरह बंद हो गए। खौफ कार्बेट की भी हड्डियों में उतर गया। हालांकि उस रात आदमखोर ने गांव का रुख नहीं किया। कार्बेट जब सुबह गांव लौटे, तो लोग उनको ज़िंदा देखकर हैरत में थे।
कॉर्बेट ने शिकार की जगह और बाघिन का रास्ता पूछकर सड़क के किनारे एक पेड़ में अपना ठिकाना बना लिया। चाँदनी रात थी। उम्मीद की जा रही थी कि शिकार साफ दिखाई देगा। गांवों में घरों के दरवाजे पहले की तरह बंद रहे। कॉर्बेट की हड्डियों में भी डर बैठ गया। हालांकि आदमखोरबाघिन ने उस रात गांव की ओर रुख नही किया । सुबह जब कार्बेट गांव लौटा तो लोग उसे जिंदा पाकर हैरान रह गए।
कॉर्बेट का अब पहला काम ग्रामीणों का विश्वास जीतना था ताकि वह उन्हें उन जगहों पर ले जा सके जहां अक्सर बाघ आते हैं। इसके लिए कॉर्बेट ने तीन जंगली जानवरों का शिकार किया। गांव वालों के बीच थोड़ी उम्मीद जगी।
कॉर्बेट ने लिखा है कि आदमखोर बाघ आमतौर पर खेतों या जंगल में काम करने वाली महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाती थी। इसलिए कार्बेट ने कपड़ों के ऊपर साड़ी लपेटकर एक महिला का रूप दिया और घास का गट्ठा बनकर उस पुतले के पास रख दिया ताकि aadamkhor बाघिन को झासा दिया जा सके.ईतना जुगाड़ करने के बाद एक-दो बार आदमखोर बाघिन पेड़ के पास पहुची, लेकिन बंदूक के दायरे में नहीं आ सकी।
पाली में कुछ दिनों के रुकने के बाद, कॉर्बेट को पता चलता है कि आदमखोर बाघिन ने स्थान बदल लिया है। आमतौर पर जहां वह शिकार कर रही होती थी, अगले कुछ दिनों तक वह वहां नही जाती थी.।
वहीं, वहां से करीब 15 किमी दूर चंपावत में उसके देखे जाने की खबरें आ रही थी। कॉर्बेट चपावत गाँव का रुख किया । रास्ते में कॉर्बेट ग्रामीणों के एक कारवां से मिले, जो धूनाघाट के पास नाश्ते के लिए रुका था, जहां हाल ही में एक बाघ ने एक महिला को मार डाला था। जब उसने हमला किया तो उसकी बहन भी पास में मौजूद थी। जब कॉर्बेट बहन से पूछताछ करने पहुंचे तो डर और सदमे के कारण वह अपनी आवाज खो चुकी थीं। घंटों की मशक्कत के बाद भी वह ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी।
जिम कॉर्बेट आदमखोर की तलाश में चंपावत पहुंचे। उन्हें वहां डाक बंगले में ठहराया गया। तहसीलदार भी उनका अभिवादन करने वहां पहुंचे। उन्होंने कहा कि वह रात्रि विश्राम भी डाक बंगले में करेंगे। हालांकि शाम को बंगले पर लौटकर वह किसी जरूरी काम का हवाला देकर घर के लिए निकला था। कॉर्बेट असमंजस में पड़ गए, आखिर ऐसा क्या था कि तहसीलदार वहां रहने के बजाय लालटेन लेकर करीब 5 किमी दूर जंगल में अकेले घर जा रहे थे, जब हर तरफ आदमखोर बाघ के हमले का खतरा मंडरा रहा था। .
कॉर्बेट को बाद में तहसीलदार के इस अस्थिर कदम के पीछे ‘सच्चाई’ का एहसास हुआ। कॉर्बेट ने लिखा, ‘मेरे पास इस बंगले की एक कहानी है, जो मैं नहीं बताऊंगा। वैसे भी यह किताब जंगल की कहानियों के बारे में है और यहां प्रकृति के नियमों से बाहर की घटनाओं को जोड़ना उचित नहीं है।
कॉर्बेट ने आगे उसे यह बताने से परहेज किया कि उस रात क्या हुआ था। हालांकि कुछ सुराग जरूर मिले हैं। कुछ जगहों पर कॉर्बेट के नौकर बहादुर खान का उल्लेख है कि रात में कॉर्बेट के कमरे से बहुत शोर आ रहा था। इसके बाद अचानक दरवाजा खुला और वह बिना कपड़ों के बाहर निकल आया। वह पसीने से लथपथ था। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं और उसके बाल बुरी तरह बिखरे हुए थे। कॉर्बेट ने बाकी रात नौकरों के साथ कमरे में बिताई। कॉर्बेट ने ‘टेम्पल टाइगर’ में लिखा, ‘यद्यपि मैं अंधविश्वासी नहीं होने का दावा करता हूं, चंपावत बंगले में मैंने जो अनुभव किया, उसके लिए मेरे पास कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं है।’
खैर, अगली दोपहर, घटना से उबरने के बाद, कॉर्बेट पास के बाजार में टहल रहे थे कि एक आदमी बदहवास हालत में दौड़ता हुआ आया। उन्होंने बताया कि अभी खेत में काम कर रही एक बच्ची को बाघिन ने उठा लिया है. कार्बेट अपनी रायफल और औज़ारों को लेकर वहाँ गया। खून के धब्बे, मांस के ताजे टुकड़ों के साथ आदमखोर बाघिन के पैरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। यह आदमखोर बाघिन का 436वां शिकार था।
पगडंडी का अनुसरण करते हुए, कॉर्बेट जंगल में एक वाटरहोल पर पहुँचे, जहाँ कुछ ही दूरी पर एक बाघिन अपने शिकार को खा रही थी। कॉर्बेट को देखकर वह लाश को घसीटती हुई दूसरी दिशा में भागने लगी। लगभग चार घंटे की जद्दोजहद के बाद कार्बेट थक हार कर लौट गए,उनके साथी ने सारी उम्मीद छोड़ दी थी।
आदमखोर बाघिन बच्ची की लाश लेकर भाग नहीं सकी। ऐसे में उनके अगले दिन लौटने की संभावना थी। कॉर्बेट ने तहसीलदार को सुबह 10 बजे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इकट्ठा करने को कहा। दहशत का आलम यह था कि कम ही लोग पहुंचे। हालांकि, दोपहर तक 200 से ज्यादा लोग ढोल, बंदूक, कुल्हाड़ी आदि हथियार लेकर जमा हो गए थे। कॉर्बेट ने उन्हें अपने साथ एक निश्चित क्षेत्र में जाने और शोर मचाने के लिए कहा। वह खुद वाली जगह में चले गए, अंत में आदमखोर बाघिन जिम कार्बेट के बन्दूक की रेज में आ ही गई,कॉर्बेट ने पहली गोली उसकी पीठ में और दूसरी गोली उनके सिर के निचले हिस्से में मारी। पास जाकर उसने तीसरा निशाना चेहरे पर मारने की कोशिश की, लेकिन गोली उसके पंजे में जा लगी। तब तक चंपावत दुनिया को अलविदा कह चुकी थी.
नरभक्षी के मरते ही जश्न का माहौल हो गया। आक्रोशित और आक्रोशित लोग शव के टुकड़े-टुकड़े करने पर आमादा थे। उसके परिवार का हत्यारिन उसके सामने पड़ी थी । हालाँकि, कॉर्बेट ने कुछ ऐसा देखा जिससे उन्हें इसका पछतावा हुआ और उन्होंने अपना विचार बदल दिया। बाघिन का दाहिना दांत टूटा हुआ था और जबड़ा पहले से ही जख्मी था। उसे पहले गोली मारी गई, जिससे उसकी मौत नहीं हुई, बल्कि उसके लिए जानवरों का शिकार करना मुश्किल हो गया। शायद इस हमले के बाद वह नरभक्षी बन गई थी।
इन घटनाओं ने कॉर्बेट को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अवैध शिकार के बजाय बाघ संरक्षण के लिए एक अभियान शुरू कर दिया। जिम कॉर्बेट के नाम पर उत्तराखंड में एक राष्ट्रीय उद्यान उनके योगदान की कहानी कहता है।